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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
करना चाहिये । सीता के बिना राम जीवित नहीं रहेगा और राम के मरने पर लक्ष्मण स्वयं मर जायगा । अतः हमें तब तक धैर्य रखना चाहिये।
इस निर्णय के अनुसार विभीषण ने लंका के चारों ओर यंत्रों का एक दूसरा परकोट बनवाया, खाई स्वदवादी 1 चारों ओर रक्षा के लिए सुभट और दिक्पाल नियुक्त कर दिये और युद्ध की सी तैयारी होने लगी।
सुग्रीव की स्त्री सुतारा के प्रति आसक्त विद्याधर साहसगति पर्वन पर जाकर कामरूपिणी विद्या सिद्ध कर किष्किधापुरी धाम: 1 उसका सपोर नहीं बाहर या सुना था। अतः साहसगति सुग्रीव का रूप बनाकर
महलों में गया और सुतारा को पकड़ने लगा। किन्तु रूप बना लेने पर भी साहसगति को सुग्रीव से सुग्रीव के समान वातें नहीं पाती थीं, न वह वहाँ के शयनासन, द्वारपालों आदि से ही राम की मित्रता परिचित था। अतः सूतारा को सन्देह हो गया और वह उससे बचकर दूसरे कक्ष में चली
गई। तभी असली सुग्रीव नगर में आया। उसे देखकर लोग आश्चर्य करने लगे-एक ता मुग्रीव पहले प्राया ही था, यह दूसरा कौन आ गया । लोगों के आश्चर्य को देखता हुभा असली सुग्रीव महलों में पहुंचा । वहाँ पहुंचते ही छद्मवेशी साहसगंति उससे लड़ने पाया। दोनों ओर की सेनायें भी प्राडटीं। तब मंत्रियों ने सोचा-'असली सुग्रीव कौन सा है, यह निर्णय करना कठिन है। फिर व्यर्थ ही इन गरीब सैनिकों का अकारण वय क्यों कराया जाय।' यह सोचकर उन्होंने दोनों सुग्रीवों को उत्तर और दक्षिण दिशा में ठहरा दिया । सुतारा ने बताया कि जो पहले पाया था, वह नकलो सुग्रीव है। जामवन्त ने भी उसका समर्थन किया। किन्तु मंत्रियों ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। वहाँ का शासन-सूत्र बाली के पुत्र चन्द्ररश्मि ने संभाल लिया तथा प्रतिज्ञा की कि जो भी सुग्रीव महलों में आवेगा, उसका ही वध कर दूंगा।
असली सुग्रीव बेचारा बड़ा दुखी हुमा । उसने रावण तथा अपने मित्र हनुमान से सहायता मांगी। हनुमान सेना लेकर आया तो नकली सुग्रीव ने उसका बड़ा स्वागत किया। तब हनुमान भी असली और नकली सुग्रीव की पहचान नहीं कर पाया और वह वापिस चला गया। तब सुग्रीव खरदूषण से सहायता लेने के लिए दण्डकारण्य पहुँचा । वहाँ हाथी, घोड़ों और मनुष्यों की लाशों को देखकर सोचने लगा कि यहां युद्ध किसका हुया है। उसने एक मनुष्य से इस बारे में पूछा तो उसने स्वरदूषण की मृत्यु, सीता हरण प्रादि वृत्तान्त कह दिया । तब सुग्रीव ने सोचा कि जिन्होंने खरदूषण जैसे वीर को मार दिया, वे अवश्य लोकोत्तर वीर पुरुष हैं। उन्हीं से सहायता लेनी चाहिए । अत: उसने एक दूत राजा विराधित के पास दोस्ती के उद्देश्य से अलंकारपुर भेजा। दूत ने जाकर विराधित से सब बातें कहीं। विराधित सोचने लगा-राम के संसर्ग से न जाने क्या-क्या लाभ होंगे। देखो, सुग्रीव भी मेरी शरण में आ रहा है ! यह विचार कर उसने दूत से कह दिया-सुग्रीव से कहना, वह राम की शरण में आ जाय। वे ही उसका दुःख दूर कर सकेगे।
दूत ने सुग्रीव से जाकर सब बातें कह दी। सुग्नीव अपनी सेना के साथ अलंकारपुर जिसे पाताल लंका भी कहते थे-आया। सेना का कोलाहल सुनकर लक्ष्मण ने विराधित से पुछा-'यह किसकी सेना मा रही है।' तब विराधित रे सुग्रीव का परिचय देते हुए कहा—बह वानर वंशी राजा राम की सहायता करने के लिए आ रहा है। तभी सुग्रीव अपने मंत्रियों सहित वहाँ प्राया । राम और लक्ष्मण उससे प्रेम से मिले । तब राम ने सुग्रीव के मंत्री जामबन्त से उसके ग्राने का कारण पूछा। जामवन्त बोला-'देव! यह चौदह अक्षौहिणी सेना का प्रधिपति बानर वंशी राजा सग्रीव है। जब यह तीर्थ यात्रा को म्या हया था तो कोई मायावी पुरुष सुग्रीव का रूप बनाकर किष्किधापुरी में आ गया और वहाँ रहने लगा। सुग्रीव इससे बड़ा दुखी है । इन्होंने हनुमान से सहायता मांगी, किन्त उन्होंने इनकी कोई सहायता नहीं की । अतः ये प्रापको शरण में पाये हैं। प्राप ही इनका दुःख दूर कर सकते हैं।'
राम ने सोचा-यह भी मेरी तरह ही पत्नी-वियोम से दुखी है। यह मेरा कार्य अवश्य करेगा। यह सोचकर वे सुग्रीन से बोले यदि तू मेरी पत्नी सीता का पता लगाकर लावेगा तो मैं नकली सुग्रीव को निकाल कर तुझे तेरी सुतारा और तेरा राज्य दिला दूंगा।' यह सुनकर सग्रीव बोला-'महाराज ! मैं बचन देता हूं कि यदि