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जन रामायण
हमा | वे बोले—माता! शोक मत करो । में जाकर राम के कुशल समाचार लाता है। यह कहकर नारद लंका पहुंचे और राम से मिलकर उन्हें बताया कि पापको माता आप लोगों के वियोग से बहुत दुखी है । आप यहाँ सुख में ऐसे मग्न है कि मापने उनकी बात तक भुलादी है। वे आप लोगों के दःख से प्राण त्याग देंगीं। यह सनकर रामचन्द्र जी बड़े व्याकुल हुए। उन्होंने उसी समय विभीषणा को बुलाया और कहा-तुम्हारे यहाँ हम लोग इतने दिन बड़े सुख से रहे। अब हमारी इच्छा अयोध्या जाने की है। आप सवारियों का प्रबन्ध कर दीजिये।' विभीषण ने राम से सोलह दिन और ठहरने का प्राग्रह किया। राम ने यह स्वीकार कर लिया। विभीषण ने शीघ्र ही एक दत प्रयोध्या को भेजा और भारत को समाचार दिया कि रामचन्द्र जी १६ दिन बाद लंका से अयोध्या को प्रस्थान
रित प्रादि को बड़ा प्रसन्नता हुई। फिर विभीषण ने बहुत से राक्षस विद्याधरी को अयोध्या की सजावट करने के लिए भेजा।
राम लक्ष्मण ने सोलह दिन बाद अनेक विद्याधरों के साथ गाजे बाजे के साथ लंका से प्रस्थान किया। राम सीता के साथ पुष्पक विमान में बैठे । लक्ष्मण, हनुमान आदि अन्य सवारियों में बैठे। मार्ग में राम सीता को सारे स्थान बताते जाते थे। दण्डक वन, वन्शगिरि, क्षेमनगर, बालखिल्य नगर, उज्जयिनी, चित्रकूट सभी प्रवासस्थानों को उन्होंने बताया। इस तरह बे अयोध्या के बाहर आ पहुंचे। भरत भी शत्रुघ्न के साथ सेना लेकर राम की अगवानी को पाया। भरत को देखकर राम आदि सभी विमान से उतरे। राम-भरत-लक्ष्मण और शत्रुघ्न परस्पर गले मिले और दोनों भाईयों ने सीता को प्रणाम किया। फिर सब अयोध्या की ओर चल दिये। मार्ग जन संकल था। हर्ष से अयोध्या झम उठा 1 सड़कें और गलियां नया श्रृंगार करके अपने बिछुड़े राम का स्वागत करने को मचल रही थी। सारा नगर सुसज्जित किया गया था। सड़कों पर गुलाबजल का छिड़काव किया गया था । तोरण और बन्दनबारों से अयोध्या पटी पड़ी थी। आज उसके नाथ जो पाये थे। बन्दीजन विरुदावलियां गाते जा रहे थे नर्तकियाँ नत्य कर रही थी। अपूर्व शोभा थी अयोध्या की।
चारों भाई सीता को बीच में करके राजद्वार पर पहुंचे। मातायें बाहर दरवाजे पर नागई। दोनों भाइयों मातानों के चरण छए। माताओं ने उन्हें हृदय से लगा लिया और प्रानन्दाथु बहाने लगी। उसके पश्चात् सीता, विशल्या आदि ने सासनों के पैर छुए। मातायों ने सबको ग्राशीर्वाद दिया। सब लोग राजमहल में गये।
रावण को विजय करने पर बलभद्र राम और नारायण लक्ष्मण स्वयमेव तीन खण्ड के मधिपति बन गये। असभव का वर्णन क्या किया जा सकता है। उनके पास ४२ लाख हाथी, ४२ लाख रथ, करोड़ प्यादे, और तीन
खण्ड के देव और विद्याधर उनके सेवक थे। राम के पास चार रत्न थे-हल, भूशल, रत्नमाला बलभत-नारायण और गदा लक्ष्मण के पास सात रत्न थे-शंख, चक्र, गदा,खड्ग, दण्ड,नागशय्या और कौस्तुभ की विमति मणि । उनका घर इन्द्र के प्रावास जैसा लक्ष्मी का मागार था। ऊँचे दरवाजों वाला चतःशाल
कोट था। उनकी सभा का नाम वैजयन्ती था। प्रासाद कूट नामक उनका महल था। वर्ष नाम का नत्य घर था । शीत ऋतु का महल कुकड़े के अण्डे जैसा था । ग्रीष्म ऋतु का धारा भण्डप गृह था। उनके सोने की शैय्या में सिंह के प्राकार ने. पागे थे। वह पद्मरागमणि की थी। अम्भोदकाण्ड नामक वर्षा ऋतु का महल था। सिद्धासन उगते सूर्य के समान था, चन्द्रमा के समान उज्वल उनके चमर और छत्र थे। अमूल्य बस्त्र और दिव्य ग्राभरण थे। उनका कवच अभेद्य था। मनोहर मणियों के कुण्डल थे। अमोघ गदा, खड्ग, स्वर्णवाण थे। ५० लाख इल, एक करोड़ से अधिक गाय, पौर अक्षय भण्डार था। मनोहर उद्यान थे, जिनमें रत्नमई सीढ़ियों वाली वावडी बनी हई थी। उनके राज्य में सारी प्रजा पूर्ण सुखी थी। किसानों के पास गाय भैस और बैलों की अधिकता थी। राम के पाठ हजार रानियां थी तथा लक्ष्मण के सोलह हजार रानियां थीं। राम ने भगवान के हजारों जिनालय बनवाये। लोग सदा घर्म-कथा किया करते थे। राम के पधारने से अयोध्या की शोभा असंख्य गुनी बढ़ गई । जनजन में राम के यश का वर्णन होता रहता था। किन्तु कुछ दुष्ट लोग सोता के सम्बन्ध में कभी कभी दबी चर्चा किया करते थे कि रावण सीता को हर लेगया था और यह उसके घर में भी रही थी। फिर भी इतने विवेकी और न्यायवान होते हुए भी राम सीता को अपने घर ले पाये।