________________
नाडा
जैन रामायण
२४ परस्त्री लंपट नहीं हैं । हम तुम्हारे चरणों की सौगन्ध खाते हैं कि हम उन्हें पीठ दिखाकर नहीं पायेंगे।' इस तरह कहकर दोनों कुमार चतुरंग सेना सजाकर युद्ध के लिए चल दिये।
अनेक देशों को जीतते हुए वे अयोध्या पहुँचे । किसी शत्रु-सैन्य का प्रागमन सुनकर राम लक्ष्मण से बोले सेना तैयार करो। बनजंघ को मारने हमें जाना ही था, किन्तु वह स्वयं मरने के लिए यहाँ आ गया है। लक्ष्मण नेत भेजकर हनमान, पिराधित, विभीषण आदि को भी बुला लिया। यूद्ध भेरी बजाई गई। राम सिंहरथ पर सवार होकर सबसे आगे चले । उनके पीछे गरुड़ रथ पर चक्र हाथ में लेकर लक्ष्मण चले। उनके पीछे असंख्य राजा और सैन्य चली। दोनों सेनायें एक दूसरे के सम्मुख पा इटी।
सीता, सिद्धार्थ क्षल्लया और नारद मुनि के साथ ऊपर विमान में बैठी हुई थीं। दोनों श्लोर से युद्ध की तैयारी देखकर सीता चितित होकर नारद से बोली-यह आपने क्या किया? कुमार प्रभी बालक हैं। वे बलभद्र
और नारायण से कैसे लड़ेगे । दोनों ओर से कोई अनिष्ट हुआ तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी।' नारद ने कहा--'पुत्री। डरो मत । ये दोनों कुमार चरमशरीरी और बनमयी शरीरधारी हैं। इस प्रकार सीता को समझा कर नारद भामण्डल के पास पहुंचे और उसे कुमारों का परिचय दिया। भामण्डल हनुमान को लेकर सीता के पास पहुंचा। दोनों कमार भी वहाँ माकर भामण्डल पीर हनुमान से मिले । युद्ध शुरू होने से पहले ही भामण्डल और हनुमान राम का पक्ष छोडकर लवणांकश की मोर पा मिले। यह देखकर अन्य विद्याधर भी युद्ध से तटस्थ हो गरे। युद्ध प्रारम्भ हो गया। लवण के योद्धाओं ने राम की सेना को छिन्न भिन्न कर दिया। यह देखकर शत्रुघ्न युद्ध करने पाया। उसे देखकर लव और कुश युद्ध करने पामे माये और शत्रुघ्न को वाणों से प्राच्छादित कर रथ से नीचे गिरा दिया। यह देखकर ऋद्ध होकर राम और लक्ष्मण शत्रु सेना का संहार करते हुए इन दोनों कुमारों के सामने प्रा डटे । लवणांकश के साथ रामपौर मदनांकुश के साथ लक्ष्मण युद्ध करने लगे तथा वनजंघ शत्रुघ्न से युद्ध करने लगा। भयंकर युद्ध हुआ । अनेक हाथी, घोड़े, सैनिक मारे गये । रथों का चूरा हो गया । खून की नदी बहने लगी । वन की कीचड मच गई। राम ने हल उठाकर मारा, किन्तु लव ने उसे व्यर्थ कर दिया। राम ने दिव्य अस्त्र चलाये. किन्तु लव पर उनका कोई प्रभाव नहीं हुमा । बाद में लवण ने राम का रथ तोड़ दिया। राम बार-बार रथ बदलते और लवण उसे तोड़ देता । राम व्याकुल हो गये । राम सोचने लगे-मेरे सारे अस्त्र व्यर्थ हो गये, सारे विद्याधर धोखा दे गये। दिव्यास्त्रों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । भूमिगोचरी राजा इसने मार दिये । मेरे भी तीन बार इसने रथ तोड दिये। राम इस प्रकार सोच ही रहे थे कि लवण ने उनके यक्षस्थल पर प्रहार किया। वे मच्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। राजाओं ने उठाकर राम को कठिनाई से सचेत किया।
उधर लक्ष्मण सागरावर्त धनुष लेकर क्रोध से मदनांकुश पर झपटे । उन्होंने अनेक बाण छोड़े किन्तु कश ने उन सबको व्यर्थ कर दिया । लक्ष्मण ने तब गदा उठाकर मारी किन्तु कुश ने उसे धनुर्दण्ड से रोक दिया। फिर कश ने लक्ष्मण पर बज्र का प्रहार किया । लक्ष्मण बन की चोट से बेहोश हो गये। विराधित रथ लौटाने लगा किन्त लक्ष्मण ने उसे डांट दिया। तब कुश ने लक्ष्मण को बाणों से ढंक दिया और सात बार लक्ष्मण का रथ तोड़ दिया 1 तब क्रुद्ध होकर लक्ष्मण ने कुझ पर चक्र फका, किन्तु चक्र कुश की प्रदक्षिणा देकर लौट आया। इस प्रकार लक्ष्मण ने सात बार चक्र मारा, किन्तु हर बार वह लौट आया । तब कुश ने लक्ष्मण पर धनुर्दण्ड घमाया। सब लोग पाश्चर्य से सोचने लगे—यह कोई नया नारायण पंदा हुआ है या कोई चक्रवर्ती आ गया है । लक्ष्मण सोचने लगे-मेरा पुण्य ही क्षीण हो गया है। इस प्रकार लक्ष्मण सोचते हुए खड़े रह गये।
तब नारद और सिद्धार्थ लक्ष्मण के पास माये और बोले- ये दोनों प्रतिद्वन्द्वी राम के पूत्र लवण और का है। जिस सीता को आप लोगों ने भयानक दन में ले जाकर छोड़ दिया था, उसे वज्रजंघ अपनी बहिन बना कर ले गया था। उसी के ये दोनों पुत्र माता के दुःख से क्रोधित होकर आपसे लड़ने आये हैं । लक्ष्मण रथ से उत्तर पश्चाताप करता हआ राम के पास गया और जाकर दोनों पुत्रों का वृत्तान्त बताया।
इसके बाद दोनों कमारों ने आकर राम लक्ष्मण के पर छुए। उन्होंने उन दोनों कमारों को छाती से सगा खिया । राम सीता-त्याग की घटना याद करके विलाप करने लगे। उन्हें विलाप करते देखकर अन्य लोगों के