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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
है। तब राम ने प्रसन्न होकर विद्याधर को सुन्दर मणियों का हार और वस्त्र पुरस्कार में दिये और कहा कि तेरा राज्य भी तुझें वापिस दिलाऊँगा ।
इसके बाद राम ने कोष में भरकर विद्याधरों से पूछा कि लंका यहाँ से कितनी दूर है और दुष्ट रावण कौन है ? यह सुनकर विद्याधर डर गये। कोई रावण के बारे में बताने का साहस नहीं कर सका । बड़ी कठिनाई से जामवंत ने रावण के पराक्रम का परिचय दिया और कहा--उससे लड़ने को सामध्ये संसार में किसी की नहीं है । श्राप सीता का विचार छोड़ दें ।
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तब लक्ष्मण बोले- 'उस प्रधम रावण को हम देखेंगे। वह पक्तिशाली होता तो यों चोरों की तरह सीता को चुरा कर न ले जाता। आप लोग लंका का मार्ग बता दीजिये ।' तब जामवन्त बोला- पुरुषोत्तम राम ! आप यह हठ छोड़ दीजिये। एक बार रावण ने भगवान अनंतवीर्य से पूछा था कि मेरी मृत्यु किसके हाथ से होगी । उस समय भगवान ने उत्तर दिया था कि जो अपने पराक्रम से कोटिशिला उठा लेगा, वहो चक्र द्वारा तेरा बध करेगा । यह सुनकर लक्ष्मण बोले --' उस शिला को मैं उठाऊंगा।' लक्ष्मण की यह बात सुनकर सुग्रीव, नल, नील, विराधित राम-लक्ष्मण को विमान में बैठाकर कोटिशिला के निकट गये यह शिला नाभिगिरि के ऊपर स्थित है । यहाँ से अनेक मुनि सिद्ध हुए हैं। उन्होंने जाकर सुर-असुरों से पूजित उस शिला को अक्षत- पुष्पादि से पूजा की। बाद में लक्ष्मण ने सिद्ध भगवान को नमस्कार कर अपने पराक्रम से उस कोटिशिला को उठाया । लक्ष्मण ने उस शिला को जांघों तक उठाया । राम आदि सभी यह देखते रहे। देवों ने पंचाश्चर्य किये । सब उपस्थित लोगों को विश्वास हो गया कि सचमुच में लक्ष्मण नारायण हैं । सब लोग उसी दिन विमान में अपने-अपने नगर में वापिस आ गये । afoner वापिस पाने पर राम ने कहा- विद्याधरो ! ग्राप लोग अब देर न कीजिये और लंका पर जल्दी चढ़ाई करके दुखी सीता को छुड़ाइये ।' तब विराधित बोला- 'देव ! आप युद्ध चाहते हैं या सीता ? यदि बिना युद्ध के सीता मिल जाय तो यह श्रेष्ठ मार्ग रहेगा । हम पहले किसी नीतिश चतुर व्यक्ति को रावण के पास भेजते हैं। शायद वह समझाने-बुझाने से सीता को वापिस करने पर सहमत हो जाय ।
हनुमान का
लका-गमन
राम ने भी इस उपाय को स्वीकार कर लिया । सबने परामर्श किया कि किस व्यक्ति को भेजना उचित रहेगा। सबने एक मत से कहा- हनुमान ही उपयुक्त व्यक्ति है। वही इस कार्य को कर सकता है पौर रावण को समझा भी सकता है । अत एक दूत को तत्काल विमान द्वारा हनुमान के पास भेजा गया। उसने जाकर हनुमान से खरदूषण और शम्बूक की मृत्यु, और सुतारा की प्राप्ति आदि के सब समाचार सुनाये। अपने पिता खरदूषण और भाई शम्बूक की मृत्यु के समाचार सुन कर हनुमान की पत्नी श्रनंगकुसुमा विलाप करने लगी और हनुमान की दूसरी पत्नी पद्मरागा अपने पिता सुग्रीव के कुशल समाचार सुनकर हर्ष करने लगी और जिनालय में जाकर नृत्य गान करने लगी । हनुमान ने तब अनंगकुसुमा को धैर्य गंवाया। बाद में सेना लेकर वह किष्किषापुर चला। सुग्रीव मादि राजाओं ने हनुमान का प्रेम से स्वागत किया । सुग्रीव ने सुतारा की प्राप्ति और रामचन्द्र जी के शौर्य प्रादि के बारे में विस्तारपूर्वक सब समाचार बताये । तब सब लोग रामचन्द्र जी के पास गये। हनुमान ने राम से कहा- 'देव ! मैं रावण को समझा कर अवश्य सीता को वापिस लाऊंगा | माप निश्चिन्त रहें ।'
जब हनुमान चलने लगा तो जामवंत ने उसे समझाया -- बानरवंशियों को एकमात्र तुम्हारा ही सहारा हैं । मतः तुम लंका में सावधानी से जाना और किसी के साथ विरोध मत करना । हनुमान ने उसकी बात मान ली और वहाँ से चलने लगा । तब रामचन्द्र जी ने हनुमान को छाती से लगा कर कहा --- तुम सीता से जाकर कहना कि राम तुम्हारे वियोग में न सोते हैं, न खाते हैं, न बैठते हैं। वे पागलों की तरह इधर-उधर घूमते रहते हैं । ये जानते हैं कि तुम शीलवती हो । उनके वियोग में तुम प्राण त्याग देने पर सुली हो । किन्तु मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है । श्रतः प्राणों को रक्षा का यत्न करो। शीघ्र ही तुम्हारा और उनका मिलाप होगा। तुम उनकी आशा रक्खो और भोजन करो।' इस प्रकार कहकर रामचन्द्र जी ने निशानी के लिए अंगूठी दी और कहा-वीर ! तुम सीता को मेरी यह निशानी दे देना और उसे और भी विश्वास दिलाने के लिये उससे कहना कि रामचन्द्र जी ने कहा है