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जंज रामायण
सात दिन के भीतर मैं सीता का पता लगाकर न लाऊँगा तो अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा।' राम उसकी बातों से बड़े प्रसन्न हुए और दोनों ने प्रतिज्ञा की-हम परस्पर विश्वासघात नहीं करेंगे।
सुग्रीव राम और लक्ष्मण को रथ में बैठाकर सेना सहित किष्किन्धापुरी पाया और उसने एक दूत नकली सुग्रीव के पास भेजा 1 दूत ने उससे जाकर कहा-तुम या तो राजा सुग्रीव की शरण में जानो या युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।' नकली सुग्रीव युद्ध के लिए तैयार हो गया और सेना लेकर प्रा डटा। दोनों पक्षों में जोरदार युद्ध हा। विषयलम्पटी साहसति ने सुग्रीव पर प्रकार किया। इससे सग्रीव मछित हो गया 1 उसे मरा हमा जानकर साहसगति यानन्दपूर्वक नगर में चला गया । होश माने पर सुग्रीव राम से बोला-प्रभो! हाथ में आया हुमा चोर निकल गया । पापने मेरी सहायता नहीं की ।' तब रामचन्द्र जी बोले-'मैं युद्ध के समय तुम दोनों के रूप रंग में अन्तर नहीं जान पाया। अतः मैंने मारना उचित नहीं समझा।
इसके बाद राम ने साहसगति को पुनः युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध के लिए उसके सम्मुख पाये । उन्होंने वजावर्त धनुष पर डोरी चढ़ाई और उसे टंकारने लगे । उसकी टंकार सुनकर साहसगति को कामरूपिणी विद्या भय के मारे भाग गई। अत: सुग्रीव का रूप हटकर बह पुनः साहसगति के रूप में आ गया। उसकी मोर की सारी सेना उसका असली रूप देखकर सुग्रीव की पोर आ गई। तभी राग ने तलवार से उसका सिर काट दिया। सेना में जय-जयकार होने लगा । सूग्रीव ने राम-लक्ष्मण का खूब आदर किया। दोनों भाई नगर के बाहर मनोरम उद्यान में ठहर गये । सुग्रीव बहुत दिनों बाद सुतारा से मिला और वह विषय-भोगों में इतना निमग्न हो गया कि राम से की हई प्रतिज्ञा भी भूल गया।
जब राम ने देखा कि सुग्रीव अपनी प्रतिज्ञा को पूरा नहीं कर रहा है तो उन्हें बड़ा क्रोध माया । वे लक्ष्मण के साथ एक दिन सुग्रीव के महलों में पहुंचे और उससे कहा-रे दुष्ट ! सुतारा को पाकर तू सुख से घर में बैठ गया है। इस प्रकार कह कर राम उसे मारने को तैयार हुए तो लक्ष्मण ने बीच में पड़कर राम से कहा-देव! इस पापी को क्षमा करें। यह अपने कार्य को भूल गया है। फिर भय से कांपते हुए सुग्नीव से बोले—'राजन ! महान पुरुषों को उपकार नहीं भूलना चाहिये। तब सुग्रीव राम के पैरों में पड़ कर क्षमा मांगने लगा और बोला-'प्रभो। माप मेरी शक्ति देखिये। मैं अभी सीता का पता लगा कर लाता हूँ।' यों कहकर उसने अपने सुभटों को पावश्यक निर्देश देकर चारों प्रोर भेज दिया और स्वयं भी बिमान में बैठकर वहां से चल दिया।
सुग्रीव अनेक नगरों, वनों और पर्वतों पर सीता को खोजता हुया जा रहा था। तभी उसे कवद्वीप के शिखर पर एक वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति बैठा दिखाई दिया । सुग्रीव उसके पास पहुंचा । वह व्यक्ति भय से कांपने
और रोने लगा। उसने समझा कि सुग्रीव को रावण ने मेरा वध करने भेजा है। सुग्रीव ने लक्ष्मण द्वारा उसके पास जाकर अभय देते हुए कहा-तू कौन है, कांपता क्यों है, भय मत कर । तव उस कोटिशिला उठाना व्यक्ति ने कहा-'राजन् ! मैं जटी का पुत्र रत्नजटी हूँ। मैं जब धातकीखण्ड के बैत्यालयों को
बन्दना करके आकाश मार्ग से लौट रहा था तो मेरे कानों में सीता के रोने की प्राचाज आई। वह विलाप करती हुई 'हाय राम हाय लक्ष्मण, हाय भाई भामण्डल कह रही थी। मैंने उसे पहचान लिया ! में तुरन्त रावण के पास गया और उसे ललकारते हुए कहा--.'रे पापी ! यह राम की पत्नी और मेरे स्वामी भामण्डल की बहन है। इसे त कहाँ लिये जा रहा है।' यह कह कर मैं उससे लड़ने लगा। तब रावण ने क्रोध में पाकर मेरो सारा विद्यायें नष्ट कर दी और मैं इस कंबुवन में प्राकर गिरा। मैं वहाँ से उठकर पर्वत पर ग्रा गया।'
सुग्रीव यह सुनकर बड़ा प्रसन्न हुमा । उसने कहा--'तुम चिन्ता मत करो कि तुम्हारी विद्यार्य नष्ट हो गई हैं। तुम हमारे भाई हो । भायो, हम राम के पास चलें ।' यों कह कर सुग्रीव रत्नजटी को राम के पास लिवा लाया पौर राम से बोला-'प्रभो! सीता का पता लग गया है, विस्तृत समाचार इससे पूछिये। राम ने रत्नजटी से सारा
माचार ज्ञात किया और बार बार पछने लगे-भाई! सत्य कहना, तुमने मेरी सीता देखी है ? रत्नजटी बोलाप्रभो ! सचमुच मैने प्रापके वियोग से दुखी सीता को देखा है । लंका का राजा पापी रावण उसे हर कर ले गया