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जैन रामायण
हनुमान ने कुम्भकर्ण को जा दबाया । अद्भुत युद्ध हुश्रा । इन्द्रजीत ने मंघ बाण छोड़ा तो भयं र वर्षा होने लगी । सारा कटक मछली की तरह तैरने लगा। तब सुग्रोव ने पवन बाण से मंचों को छिन्नविच्छिन्न कर दिया। तब इन्द्रजीत ने अग्निबाण छोड़ा। चारों ओर बाग लग गई। उसे सुखी षोड़ बुझा लिए अन्त में इन्द्रजीत ने मायामय वस्त्रों से सुग्रीव को व्याकुल कर दिया और फिर नागपाश में बांध लिया। उधर मंथनाद ने भामण्डल को उसी शस्त्र से बाँध लिया।
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यह देखकर विभीषण ने राम और लक्ष्मण से कहा- 'वो ! देखिये, सुप्रीव और भामण्डल को नागपाश में बाँध लिया है और हनुमान को घायल कर कुम्भकर्ण ने भुजाओंों में जकड़ लिया है। इनके मर जाने पर हम सबका मरण निश्चित है। आप इनकी रक्षा कीजिये में तब तक इन्द्रजीत मोर वाहन को रोकता है।' यह कह कर विभीषण इन्द्रजीत और मेघनाद से बुद्ध करने पहुंचा। दोनों भाई अपने चाचा से संकोच के साथ युद्ध से हट गये। तब तक अंगद ने कुम्भकर्ण से हनुमान को छुड़ा लिया। सुग्रोव और भामण्डल को मरा जानकर राक्षस वारिस बने गये। तब सब लोग उनके पास आये। उस समय राम ने गरुणेन्द्र को स्मरण किया और उससे उन दोनों को जिलाने के लिये कहा । तब प्रसन्न होकर गरुणेन्द्र ने राम को हल, मूग़ल, छत्र, चमर, श्रीर सिंहवाहिनी विद्या दो और लक्ष्मण को गदा, खड्ग और मरुड़वाहिनी दिया दो दोनों भाई अन्य राजाओं के साथ सुबोब बोर भामण्डल के पास माये । गरुड़ों की हवा लगने से सर्पों के बन्धन ढोले पड़ने लगे, विष दूर हो गया और दोनों बोर मूर्च्छा से उठकर बैठ गये। सब लोग बड़े हर्षित हुए।
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अगले दिन मारोप मादि सेनानायक बुद्ध के लिए आगे आये और उन्होंने वानरवंशी सेना पर भारी दबाव डालना प्रारम्भ किया। उनका प्रतिरोध करने के लिये भामण्डल आगे बढ़ा। उसने राक्षस सेना को दबाया।
तब रावण युद्ध के लिये स्वयं माया । उसने वाण-वर्षा करके वानर सेना को तितर बितर कर लक्ष्मण के दिया । यह देखकर विभीषण उससे युद्ध करने आ गया। उसे देखकर रावण बोला- 'तू व्ययं शक्ति का लगना में क्यों मरने का गया। मैं तो शत्रुओं को मारने आया है। अतः तू लौट जा' तब विभीषण 'बोला- 'तुम सीता राम को सौंप दो, धन्यथा तुम मारे जायोगे ।' दोनों भाई युद्ध करने लगे। रावण ने विभीषण का छत्र उड़ा दिया। विभीषण ने उसकी ध्वजा उड़ा दी। लक्ष्मण इन्द्रजीत से और राम कुम्भकर्ण से युद्ध करने लगे ।
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इन्द्रजीत ने लक्ष्मण पर अन्धकार वाण छोड़ा। लक्ष्मण ने सूर्य बाण छोड़कर अन्यकार का नाश कर दिया। इन्द्रजीत ने नागवाण छोड़ा तो लक्ष्मण ने गरुड़ बाण छोड़कर नागों को भगा दिया। इसके बाद लक्ष्मण ने नागवाण छोड़ कर इन्द्रजीत को बांध लिया इन्द्रजीत नागपाश में बंधकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। राम ने भी कुम्भकर्ण की नागपाश में बांध लिया। राम-लक्ष्मण का संकेत पाते ही भामण्डल ने दोनों वीरों को अपने रथ में डाल दिया । विधित ने मेघनाद को नागपाश में बांध लिया। रावण ने विभीषण पर त्रिशूल छोड़ा, लक्ष्मण ने आकर उसे बीच में ही रोक लिया। तब रावण ने धरमेन्द्र द्वारा दी हुई शक्ति को हाथ में लेकर लक्ष्मण से कहा 'अरे बालक! तू क्यों व्यर्थ में युद्ध करने आया है। ग्राम तु वच प्रहार से मेरे हाथों मारा जायगा। लक्ष्मण ने कोष में उत्तर दिया
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दुष्ट ! तू परस्त्रीलम्पट है । आज तेरी मृत्यु निश्चित है । यों कह कर दोनों महावीर परस्पर भिड़ गये। रावण नेता कर वह शक्ति लक्ष्मण के वक्षस्थल पर फेंक कर मारी शक्ति लगते ही लक्ष्मण मूच्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। तब राम रावण से युद्ध करने लगे। उन्होंने रावण को छह बार रथरहित कर दिया और बाण-वर्षा से उसे ढंक दिया। रावण व्याकुल होकर युद्ध बन्द कर लोट गया ।
रावण को सन्तोष था कि चलो आज एक वीर तो मारा गया। किन्तु जब उसे कुम्भकर्ण, इन्द्रजीत मोर मेघनाद के समाचार मिले तो वह विलाप करने लगा। उपर सीता को लक्ष्मण के समाचार मिले तो विलाप करने सभी। रावण के चले जाने पर राम लक्ष्मण के पास पहुँचे और उन्हें मरा हुआ जानकर वे मूच्छित होकर गिर पड़े। अब उन्हें दोश बाया तो वे विलाप करने लग-वरस! तू भुभं विदेश में अकेला छोड़ कर कहाँ चला गया।