________________
जैन रामायण
मेघनाद हाथी पर चढ़कर राक्षसों के साथ वहाँ आया । उसे देखकर हनुमान ने विद्या से वानर सेना तैयार करी । हनुमान और मेघनाद में युद्ध हुया । माखिर हनुमान ने मेघनाद को मार भगाया। तब इन्द्रजीत लड़ने आया। दोनों में भयानक युद्ध हुआ । अन्त में इन्द्रजीत ने हनुमान को नागपाश में बाँध लिया और ले जाकर रावण के सामने खड़ा कर दिया है
रावण उसे देखकर अत्यन्त क्रुद्ध होकर बोला- घरे दुष्ट ! तूने लंका में यह ध्वंस क्यों किया, मेरा उद्यान क्यों नष्ट कर दिया । मैंने तुझे प्रभुत्व दिया था मौर तू राम से जा मिला, जिसकी स्त्री को मैं ले आया हूँ और अब तू उस राम का दूत बन कर आया है। मैं तुझे भी मारता हूँ।' यों कह कर रावण ने हनुमान को मारने के लिए तलवार उठाई, किन्तु मंत्रियों ने उसे यह कह कर रोक लिया कि दूत अवध्य होते हैं । तब हनुमान ने निर्भय होकर कहा -- मैंने तो अभी क्या नाश किया है, किन्तु क्रुद्ध राम शीघ्र ही तेरा नाश करेंगे । परस्त्री चोर रावण तो नरक लगा ही, किन्तु आप लोग भी इस पाप में साथ देने के कारण नरक में जायेंगे। समझलो, अब राक्षसवंशियों का विनाश-काल आ गया है।
तब रावण ने क्रोध में भर कर श्राज्ञा दी - 'इस दुष्ट को नगर के बाहर ले जाकर शूली पर चढ़ा दो ।' अनेक सुभट हनुमान को लोहे की सकिलों से बांध कर लंका के बाजारों में होकर ले चले। लोग हनुमान का उपहास उड़ाने लगे - रावण से विमुख होने का यही फल मिलता है। यह सुनकर हनुमान को क्रोध आ गया। उसने लोह श्रृंखलायें तोड़दों और आकाश में उड़ गया। उसने नगर का स्वर्णमयी कोट ढा दिया, फाटक तोड़ दिये। सारी लंका में आग लगा दी । रावण का घर, ध्वज, तोरण नष्ट कर दिये। इस प्रकार लंका दहन कर हनुमान किष्किंधापुरी की भोर चल दिया । वह वहाँ पहुँच कर राम पास पहुंचा और उन्हें प्रणाम कर खड़ा हो गया। राम ने उसे छाती से लगाकर पूछा -- सीता कुशलपूर्वक तो है । तुमने उसे कहाँ देखा । तब हनुमान ने चूड़ामणि रत्न निकाल कर उनके सामने रख दिया और सीता का कहा हुआा सन्देश सुना दिया। उसे सुनकर राम दुःख तं भधीर होकर रोने लगे । तब लक्ष्मण ने उन्हें धैर्य देते हुए कहा - 'देव ! दुःख करने से क्या होगा। में भाज ही लंका में जाकर रावण को मारकर सीता को लाऊँगा ।' तब राम को कुछ सान्त्वना मिली और अपने शरीर से आभरण उतार कर प्रेम पूर्वक हनुमान को दे दिये ।
और सब विमानों में पंचमी थी । चलते
लक्ष्मण ने सब विद्याधरों को एकत्रित किया और उनसे कहा- 'भब लंका पर चढ़ाई करने का समय भा गया है । मब देर नहीं करनी चाहिये । सब विद्याधर लंका पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो गये बैठ कर चल दिये। उस दिन प्रभात के समय मार्गशीषं कृष्णा समय अनेक शुभ शकुन हुए। राम की सेवा में बड़े-बड़े योद्धा थे नल, नील, सुग्रीव, अंग, अंगद, हनुमान, विराधित, महेन्द्र, प्रश्नकीर्ति, घनगति, भूतनाद, गजस्वन, व्रजसुख आदि । वे चलते-चलते बैलंधर द्वीप पहुँचे। वहाँ पर नगर के राजा समुद्र से युद्ध हुआ । नल ने उसे जीता हुआ पकड़ लिया। जब उसने रामचन्द्रजी का आधिपत्य स्वीकार कर लिया तो उसे उसका राज्य दे दिया। वहाँ से चल कर सुवेलपुर पहुँचे और वहाँ के राजा सुबेल को जीता। वहाँ से लंका को चले । विमानों से सबने देखा -- सोन का कोट, सोने के महल, अत्यन्त वैभवपूण लंका नगरी । सब लोग हंसद्वीप में उतर गये। वहाँ के राजा को जीता और भामण्डल की प्रतीक्षा करने लगे । तब तक लंका में एक दूत भेज दिया ।
राम का लंका पर प्राक्रमण
राम का ग्रागमन सुनकर लंका में कोलाहल मच गया। रावण ने रणभेरी बजा दी। सभी सुभट एकत्रित झेकर रावण के पास पहुँचे। रावण को युद्ध के लिये उद्यत देखकर विभीषण उसे समझाने लगा — 'देव ! कृपा कर मेरी विनय सुनिये । आाप न्याय मार्ग पर चलने वाले हैं। अतः बाप राम को सोता सौंप दीजिये । व्यर्थ ही इस अन्याय युद्ध से लाभ नहीं होगा। हमारे वंश का नाश हो जायगा ।' यह सुन कर इन्द्रजीत बोला- 'प्रगर ग्रापको भय लगता है तो आप घर में बेटिये । स्त्रीरत्न को पाकर कहीं छोड़ा जाता है। रावण के श्रागे राम बेचारा तुच्छ है।' तब विभीषण पुनः समझाते हुए बोला- 'इन्द्रजीत ! ऐसा मत कहो । पाप से राजा भी रंक हो जाते हैं । तुम्हारे पिता सीता नहीं लाये, बल्कि विष लाये हैं। हनुमान मादि धनेक राजा गण राम के पक्ष में मिल गये हैं ।'
1