________________
जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
नाम हनुमान रवस्खा गया 1 बालक वहाँ रहकर धीरे धीरे बड़ा होने लगा।
उधर रावण के पास पवनकुमार अपनी सेना के साथ पहुंचा और वरुण से भयानक युद्ध हुमा । युद्ध में पवनकुमार ने बड़ी वीरता दिखाई। उसने वरुण को बन्दी कर लिया। बरुण को अन्त में खरदूषण को छोड़कर रावण के साथ सन्धि करनी पड़ी।
युद्ध समाप्त होने पर प्रशंसा और सम्मान पाकर पवन कुमार अपने नगर की ओर लौटा। अब उसे अपनी प्राणप्रिया की याद सताने लगी। भगर में पहुंचने पर अपने विजयी राजकुमार का नगरवासियों ने हार्दिक स्वागत किया। उसे तो अंजना से मिलने की शीघता थी, वह स्वागत-सत्कार से निबट कर सीधा अंजना के महल में पहुंचा। किन्तु महल को सूना पाकर वह व्याकुल हो गया। वह सारे कक्षों में अंजना का नाम लेता हया फिरने लगा। उसने दास दासियों से अंजना के बारे में पूछा, किन्तु राब नीचा सिर किये चप हो गये। उसके मित्र प्रस्त ने अंजना के बारे में सब बातें पता लगाकर पवन से कहीं। तत्काल दोनों मित्र विमान से महेन्द्रपुर प्राये। वहां भी अंजना को न पाकर वह वहाँ से उसे हूँढने चल दिया। प्रहस्त को उसने समाचार देने के लिए प्रादित्यपुर भेज दिया और स्वयं बनों में टूटने लगा। वह अंजना के वियोग में बिलकुल विक्षिप्त हो गया, न उसे खाने की न जल की चिन्ता। वह अंजना-ग्रंजना चिल्लाता फिरता था।
उसके पिता प्रल्हाद पुत्र के समाचार सुनकर अत्यन्त चिन्तित हो गये। उन्होंने चारों ओर अंजना और पवनकमार को ढंढने अपने प्रादमी भेज दिये चौर स्वयं भी महेन्द्रपुर जाकर और महेन्द्र को लेकर दंढने चल दिथे । जब प्रतिसूर्य के पास पवनकुमार के बारे में समाचार पहुँचे तो अंजना अत्यन्त व्याकुल होकर रोने लगी। प्रतिसूर्य ने उसे धर्य बंधाकर कहा-बेटी ! चिन्ता मत कर, मैं पवनकुमार को ढूंढकर बाज ही यहाँ ले पाऊँगा। यो कहकर मह कुमार को ढूंढने चल दिया । वह और राजा प्रसाद आदि ढूंढते-ढूंढते उसी बन में पहुँचे और पवनकुमार को पाकर बड़े प्रसन्न हुए। किन्तु पवनकुमार ने किसी से कोई बात नहीं की। वह चुपचाप बैठा रहा । सब प्रतिमूर्य ने उसे अंजना के सब समाचार सुनाये । फलतः पवनकुमार अत्यन्त माह्लादित होकर प्रतिसूर्य से गले
| सब लोग प्रसन्नतापूर्वक हनुरुह द्वीप आये और अंजना को पाकर सब लोग बड़े हषित हए। कुछ समय पश्चात् सब लोग लौट गये किन्तु पवनकुमार वहीं रह गये ।
धीरे-धीरे हनुमान यौवनसम्पन्न हए और उन्होंने अनेक विद्यानों का साधन किया। एक बार पन: रावण का वरुण के साथ युद्ध हुया। रावण का निमन्त्रण पाकर सभी राजा अपनी सेनायें लेकर रावण के पास
पवनकुमार और हनुमान भी गये। हनुमान के रूप और यौवन को देखकर रावण बहा प्रसन्न हया और बड़े प्रेम से हनुमान से मिला।
दोनों पक्षों में भयानक युद्ध हुमा । इस युद्ध में हनुमान ने प्रसाधारण वीरता दिखाई। उन्होंने वरुण के सौ पूचों को अपनी लांगल विद्या से बांध लिया और रावण ने वरुण को नागपाश से बांध लिया। इस प्रकार हनुमान के असाधारण शौर्य के कारण रावण की विजय हुई।
रावण ने प्रसन्न होकर अपनी बह्न चन्द्रनखा की पुत्री अनंगकुसुमा का विवाह हनुमान के साथ कर दिया और कुण्डलपुर का राज्य देकर सब विद्याधरों का प्रमुख बना दिया। बाद में सुग्रीव और किन्नरपुर के राजा ने भी अपनी कन्याओं का विवाह हनुमान के साथ कर दिया।
एक दिन राजा दशरथ की रानी अपराजिता (कौशल्या) रात्रि में सुखपूर्वक सो रही थी। श्री रामचन्द्र उसने रात्रि के पिछले पहर में चार स्वप्न देखे । वह उठी और अपने पति के पास जाकर प्रादिका जन्म गौर उनके चरणों में नमस्कार करके बोली-नाथ ! मैंने आज रात्रि के अन्तिम प्रहर में स्वप्न
में हाथी, सिंह, सूर्य और चन्द्रमा देखे हैं।' राजा सुनकर बोले-'देवि ! तुम्हारे मत्यन्त प्रभावशाली, सुखी भोर शत्रुओं का दमन करनेवाला पुत्र उत्पन्न होगा। उसी रात्रि को ब्रह्म स्वर्ग से चलकर एक जीव रानी के गर्भ में पाया । तबसे रानी का मन भगवान की पूजा में अधिक लगने लगा।