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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
को भात दे जाती और उसे देख जाती । बारह बर्ष बाद एक दिन उसने खड्ग को देखा। वह बड़ी प्रसन्न हुई। उसने अपने पति से जाकर यह बात बताई कि आज से तीसरे दिन हमारा पुत्र खड्ग सिद्ध करके यहाँ आ जायगा। प्रात: उसके स्वागत समारनी चाहिये।
जब अगले दिन चन्द्रनखा अपने पुत्र को देखने आई तो पुत्र का मस्तक कटा हुया देखकर दुःख से रोने लगी। वह बार-बार मूच्छित हो जाती और होश में आने पर विलाप करने लगती। वह सोचने लगी कि जिसने मेरे पुत्र का बध करके खड्ग को चुराया है, उस पापी को अपने पति और भाई द्वारा मरवा झालंगी !यों सोचकर वह अपने पुत्र के हत्यारे को खोजने लगी। उसे कुछ दूर आगे जाने पर कामदेव जैसे दो देवकुमार दिखाई दिये। उन्हें देखते ही वह पुत्र-शोक भूल गई और काम से पीड़ित हो गई । वह विद्या से बनलक्ष्मी के समान सुन्दर कन्या का रूप बनाकर एक वृक्ष के नीचे बैठ कर रोने लगी। उसका करुण रुदन सुनकर सोता उसके पास आई और उसे सान्त्वना देती हई रामचन्द्रजी के पास ले पाई। राम ने उससे रुदन का कारण पूछा तो वह बोली-'नाथ ! बचपन में ही मेरे माता-पिता मर गये। मैं अनाथ होकर इस जंगल में मारी-मारी फिर रही हैं। यदि आप दोनों में से मुझे कोई अपना ले सो मैं उन्हीं की शरण में पड़ी रहूंगी, अन्यथा मेरा मरण निश्चित है। उसकी बात सुनकर समय रामचन्द्रजी बोले-बाले! हम दोनों में से तो तुम्हें कोई नहीं चाहता। अन्यत्र तुम चली जामो। यों कहकर उसे वहां से निकाल दिया। वह ऋद्ध होकर अपने नगर में लौट भाई और बाल बखेर कर शरीर में खरोंचकर ब्री तरह रोने लगी। उसका रुदन सुनकर खरदूषण आया और उससे रोने का कारण पूछने लगा। उसने रो रो कर बताया-नाय ! हमारा पत्र संवक सूर्यहाम तलवार को दण्डक-वन में साधन कर रहा था। कहीं से स्त्री सहित दो पुरुषों ने आकर हमारे पुत्र का बध कर दिया और तलवार छीन ली। मैं पुत्र को देखने गई तो वे दुष्ट मेरे साथ कुचेष्टा करने लगे । यही अच्छा हुमा कि मेरा पोल खण्डित नहीं हुमा। मैं बड़ी कठिनाई से उनसे बच कर यहाँ पा सकी हैं। पाप उन पुत्रघातियों से अवश्य बदला लें।
पुत्र-मरण का समाचार सुनकर खरदूषण मूच्छित हो गया और विलाप करने लगा। फिर उसे क्रोध पायामैं अभी जाकर उन दुष्टों का सिर काट कर लाता हूँ।' जब वह चलने लगा तो मंत्रियों ने समझाया-'जिन्होंने सूर्यहास खड़ग छीन लिया और संवूक कुमार का बध किया है, वे अवश्य ही कोई वीर पुरुष होंगे। प्रतः महाराज रावण को समाचार भेजना ठीक होगा । मंत्रियों की बात सुनकर उसने एक दूत रावण के पास भेजा । दूत ने जाकर रावण को सब समाचार बताये। सुनकर रावण को बड़ा कोष प्राया और युद्ध की तैयारी करने लगा।
इधर खरदूषण पुत्र-शोक और क्रोध से अधीर हो रहा था। वह पपनी सेना लेकर दण्डक वन पहुंचा। जब सेना रामचन्द्र जी के निकट प्रागई, तब लक्ष्मण बोले-'देव! यह तो उस मरे हुए मनुष्य के पक्ष के लोग मालम पडते हैं। उस फूलटा स्त्री ने ही ये भेजे मालम पड़ते हैं।' रामचन्द्र जी बोले -.'लक्ष्मण ! तू सीता की रक्षा कर, मैं इन्हें मारता है। किन्तु लक्ष्मण ने प्राग्रह किया-देव ! मेरे रहते आपको युद्ध करना उचित नहीं है। माप राजपुत्री की रक्षा करें। मैं युद्ध के लिये जाता हूँ। यदि मुझ पर कोई विपत्ति आई तो मैं सिंहनाद कर आपको सूचना दूंगा।
यह कहकर सागरावतं धनुष और सूर्यहास तलवार लेकर लक्ष्मण युद्ध के लिए शत्रु के सम्मुख प्रा डटे। दोनों ओर से युद्ध होने लगा। अकेले लक्ष्मण ने वाणों की वर्षा कर शत्रु-पक्ष को व्याकुल कर दिया । इसी बीच रावण भी सेना सहित दण्डक बन में आगया । वह 'संवूक को मारने वाला वह नराधम कहाँ हमा सम्मुख पाया और रूपलावण्यवती सीता को देख कर काम से पीड़ित हो गया। वह सोचने लगा—'मैं इस रूप सुन्दरी को कैसे प्राप्त करूं। बलपूर्वक इसका अपहरण करूं तो व्यर्थ युद्ध होगा मोर अपयन भी होगा। पत. इसके हरने का कोई ऐसा उपाय करूं कि कोई जानन पाये।
इस प्रकार सोचकर उसने कर्ण पिशाचिनी विद्या को बुलाकर उस स्त्री का परिचय पूछा और उपाय भी पहा । उसने सीता का परिचय देकर कहा कि लक्ष्मण जब सिंहनाद का शब्द करेगा तो राम भी पद के लिए जायेगा।' विद्या के बचन सुनकर उस परस्त्री लम्पट ने सिंहनी विद्या को बुलाया मोर उसे सिखा-पढ़ा कर युद्ध में भेजा। उसने जाकर दोनों मोर की सेना में घोर अंधकार कर दिया और लक्ष्मण की प्रायाज में 'राम-राम इस