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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास प्रतिमा ले जाकर मूल नायक के रूप में विराजमान कर दी गई। उसके कारण यह शान्तिनाथ का मन्दिर कहा जाने
लगा ।
इस मन्दिर के पीछे एक मन्दिर और है । मन्दिर से तीन मील की दूरी पर नशियाँ बनी हुई है। तांगे मिलते हैं। रास्ता कच्चा है। सबसे पहले भगवान शान्तिनाथ की नशियों है । उसमें भगवान के चरण चिन्ह है। फिर कुछ दूर जाने पर एक कम्पाउण्ड में अरनाथ और कुन्थुनाथ की नशियाँ हैं । इन दोनों में भी चरण चिन्ह बने हुए हैं। इनसे आगे एक कम्पाउण्ड में भगवान मल्लिनाथ की टोंक है ।