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द्वाविंश परिच्छेद
जैन रामायण
कर्मभूमि के प्रारम्भ में संसार के मादि महापुरुष, भादि ब्रह्मा, मादि तीर्थकर, आदिनाथ, ग्राद्य भगवान ऋषभदेव हुए। उनके पिता का नाम नाभिराय था, जो चौदहवें कुलकर या मनु थे। माता का नाम मरुदेवी था । उनके सौ पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं। बड़े पुत्र का नाम भरत था, जो भरत क्षेत्र के प्रथम चक्रइक्ष्वाकु वंश, सूर्यवंश, वर्ती सम्राट् थे। इन्हीं के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। दूसरे पुत्र बाहुबली थे, चन्द्रवंश जो प्रथम कामदेव थे । पुत्रियों के नाम ब्राह्मी और सुन्दरी थे । ब्राह्मी को भगवान ऋषभदेव ने लिपि विद्या सिखाई थी। उसके नाम पर ही प्रागे लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि पड़ गया । भगवान ने अपनी दूसरी पुत्री सुन्दरी को अंक विद्या सिखाई थी ।
भगवान जब गृहस्थाश्रम छोड़कर प्रब्रजित हो गये तो उन्होंने छह माह तक घोर तपस्या की। उसके पश्चात् वे नगर में आहार के लिये निकले । किन्तु उस समय लोग मुनिजनोचित आहार की विधि नहीं जानते थे । मतः भगवान अपने नियमानुसार आहार को निकलते और विधि के अनुकूल माहार न पाकर बन में लौट जाते । इस प्रकार छह माह बीत गये। तब विहार करते हुए भगवान हस्तिनापुर नगर में पधारे। वहाँ के राजा सोमप्रभ के लघु भ्राता श्रयान्स को भगवान का दर्शन करते ही पूर्व जन्म में मुनि को दिये हुए आहार का स्मरण हो श्राया । उस समय महल में शुद्ध इक्षु रस (गन्ने का रस ) रक्खा हुआ था। राजकुमार श्रेयान्स ने भगवान को बाहार में वही इक्षु रस दिया। राजा श्रेयान्स दान तीर्थ के कर्ता और प्राद्य प्रवर्तक कहलाये ।
यह घटना भगवान के मुनि-जीवन से सम्बन्धित प्रथम महत्त्वपूर्ण घटना थी। अतः भगवान का कुल इक्ष्वाकु वंश कहलाया । इसी वंश को इतिहासकारों ने ककुत्स्थ वश भी कहा है क्योंकि भगवान ऋषभदेव का ध्वज - चिन्ह ककुत्स्थ (बैल) था।
इसी वंश से सूर्यवंश निकला। चक्रवर्ती भरत के ज्येष्ठ पुत्र नर्ककीर्ति थे। वे पत्यन्त तेजस्वी और प्रभावशाली थे। उनके नाम पर ही सूर्यवंश की उत्पत्ति हुई और उनके वंशजों को सूर्यवंशी कहा जाने लगा । इस वंश में अनेक प्रतापी सम्राट् हुए। राजकुमार श्रेयान्स के बड़े भ्राता सोमप्रभ से सोमवंश भगवा चन्द्रवंश चला ।
seera वश में पनेक राजा हुए। भगवान मुनिसुव्रतनाथ के तीर्घकाल में विजय नाम का एक राजा हुआ। उसके वंश में सुन्दर, कीर्तिधर, सुकोशल, हिरण्य, रुचिनधुष, सौदास सिंहरथ प्रादि राजा हुए। इसी वंश में हिरण्य कश्यप हुआ । उसके पुंजस्थल, फिर ककुत्स्थ, और उससे रघु हुन । रघु अत्यन्त प्रतापी सम्राट् था । उससे ही रघुवंश चला ।
रघुवंश राजा रघु के अनरण्य नाम का पुत्र हुआ । श्रनंरण्य की पटरानी पृथ्वीमती थी। उनके दो पुत्र हुए- एक राजा दशरथ और का नाम था श्रनन्तरथ और दूसरे का नाम या दशरथ । मनन्तरथ तो अपने पिता के साथ उनकी रानियों
यथासमय सन्यास लेकर मुनि हो गया । अतः राज्याधिकार दशरथ को प्राप्त हुआ ।
दशरथ अत्यन्त तेजस्वी और नीति परायण नरेश थे। उन्होंने तीन राजकुमारियों के साथ विवाह किये
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