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जैन रामायण
मन्दोदरी उन सब रानियों में मुख्य पटरानी रही। कुम्भकर्ण जिसका दूसरा नाम भानुकर्ण था का विवाह तडिन्माला के साथ और विभीषण का विवाह राजीव सरसी नामक राजकन्या के साथ हो गया । यथासमय मन्दोदरी के दो पुत्र हुए- इन्द्रजीत और मेघवाहन ।
अब रावण की कुबेर से छेड़खानी शुरू हो गईं । कुम्भकर्ण ने कुबेर की प्रजा लूट ली। कुबेर ने सुमाली के पास दूत भेज कर कहलवाया कि पहले तुम्हारा भाई मारा गया था। यदि तुमने अपने नातियों की उद्दण्डता को नहीं "रोका तो तुम सबका बध निश्चित है। यह सुनकर रावण ने दूत को फटकार कर और ग्रप मानित कर निकाल दिया । दूत ने जाकर कुबेर को सारे समाचार बताये । अतः क्रुद्ध होकर कुबेर ने अपनी सेना सजाकर रणभेरी बजा दी। रावण भी राक्षसवंशी और वानरवंशी सेनाओं को लेकर जा हटा। मुंज नामक पर्वत पर दोनों सेनाओं का घोर युद्ध हुआ । इस युद्ध में रावण ने कुवैर पर बचदण्ड का प्रहार किया, जिससे वह मूर्च्छित हो गया और उसकी सेना भाग खड़ी हुई । रावण ने कुबेर के पुष्पक विमान पर अधिकार कर लिया।
अव रावण ने दक्षिण के राज्यों को जीतना प्रारम्भ किया। वह रुका नहीं बढ़ता ही गया। तभी समाचार मिला कि बानरवंशी यक्षराज और सूर्यरज ने अपनी किष्कु नगरी लेने के उद्देश्य से बानर द्वीप लूट लिया। यह समाचार सुनकर इन्द्र का भयंकर लोकपाल यम उनसे युद्ध करने आया। उसने युद्ध में यक्षरज को बाको सुलिन कर दिया है। सारी बानर सेना का यम ने निर्दयतापूर्वक विध्वंस करना प्रारम्भ कर दिया। बहुत से बानरवंशी मारे गये और बहुत से बानर बन्दी बना लिये गये ।
रावण का इन्द्र के साथ युद्ध
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'यम ने अपने यहाँ नरक जैसी व्यवस्था कर रक्खी है। वहाँ वह बन्दी बानरों को निर्मम पीड़ा दे रहा है । बाप की ही शरण है।' यह सुनकर रावण सेना सहित किष्कुपुर पहुँचा। वहाँ उसका यम के साथ भयंकर युद्ध हुआ । यम पराजित होकर भाग गया और इन्द्र के पास रथनूपुर जा पहुँचा । रावण ने बन्दी वानरों को मुक्त किया और यक्षरज को किष्कुपुर का राज्य दिया तथा सूर्यरज को किष्किन्धापुर का राज्य दिया अपना गया हुआ राज्य पाकर बानरवंशी बहुत प्रसन्न हुए और सुखपूर्वक रहने लगे। रावण तब राक्षसवंशियों को लेकर समुद्र तट पर पहुँचा और बड़े उल्लास और समारोह के साथ लंका में प्रवेश किया ।
इसी बीच एक घटना और हो गई। रावण लंका से बाहर गया हुआ था। तभी मलंकारपुर के राजा स्वरदूषण ने जो मेघप्रभ का पुत्र था, लंका में आकर रावण की बहन सुन्दरी चन्द्रनखा को हर लिया। कुम्भhi और विभीषण ने उसका प्रतिरोध भी किया, किन्तु वे उसे छुड़ा नहीं सके । खरदूषण बड़ा बलवान था । जब रावण लौटा और उसने यह समाचार सुना तो वह बड़ा क्रोषित हुआ और खरदूषण से युद्ध करने को तैयार हो गया। तब उसकी पटरानी मन्दोदरी ने उसे समझाया---' कन्या तो पराये घर की होती है। खरदूषण ने चन्द्रनखा का अपहरण कर लिया तो क्या बात हो गई। अपहृत कन्या को एक तो कोई लेगा नहीं। दूसरे खरदूषण योग्य पात्र है। वह चौदह हजार विद्याधरों का राजा है। मनेक विद्यायें उसे सिद्ध हैं । वह समय पड़ने पर आपकी सहायता भी कर सकता है। फिर पता नहीं, युद्ध में किसकी जीत हो ।" इस प्रकार समझाने से रावण भी विरत हो गया ।
'युद्ध से
म उसने इन्द्र को जीतने के लिये कंच किया । चत्ररत्न उसके पास था, जिसकी रक्षा एक हजार देव करते थे । अनेक राजा और विशाल फौज उसके साथ थी । चलते चलते विन्ध्याचल पर नर्मदा के तट पर सेना ने पड़ाव डाला । प्रातः काल नदी की बालू इकट्ठी करके उस पर जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा विराजमान करके रावण भक्ति से पूजा करने लगा। जहां रावण पूजा कर रहा था, उससे ऊपर की घोर नदी का जल बांधकर माहिष्मती का राजा सहस्ररश्मि अपनी स्त्रियों के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। जब क्रीड़ा कर चुका तो उसने sis का पानी छोड़ दिया। पानी के पूर से रावण की पूजा में बड़ा बिघ्न पड़ा। वह क्रोषित होकर बोला कि यह मया गड़बड़ है । कुछ लोगों ने मागे जाकर पता लगाया और आकर रावण से निवेदन किया- 'महाराज ! माहिष्मश्री नरेश सहस्ररश्मि अपनी रानियों के साथ जल-क्रीड़ा कर रहा था। उसने यह पानी छोड़ा है। यह सुनकर