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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
भगवान सुनिसुव्रतनाथ को जन्म नगरी - राजगृही
जैनधर्म में राजगृही नगरी का एक विशिष्ट स्थान है। वह कल्याणक नगरी है, निर्वाण-भूमि है और भगवान महावीर के धर्म चक्र प्रवर्तन की भूमि है। धर्म-भूमि होने के साथ-साथ वह युगों तक राजनीति का केन्द्र भी रही है और भारत के अधिकांश भाग पर उसने प्रभावशाली शासन भी किया है। इसलिये इस नगरी ने इतिहास में निर्णायक भूमिका अदा की है।
- इस नगरी में भगवान मुनिसुव्रतनाथ के गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान ये चार कल्याणक हुए थे 1 - इस नगर के पाँच पर्वतों में बंभार, ऋषिगिरि, विपुलगिरि और बलाहक ये चार पर्वत सिद्धक्षेत्र रहे हैं। यहाँ से अनेक मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया है, जैसा कि प्राचार्य पूज्यपाद संस्कृत निर्वाण भक्ति में बताया है।
- राजपुर नरेश जीवन्धर कुमार भगवान महावीर से दीक्षा लेकर मुनि हो गये। वे भगवान के साथ विहार करते हुए विपुलाबल पर पधारे। जब पाया भगवान महावीर का निर्वाण हो गया, उसके कुछ काल पश्चात् मुनि जीवन्धर कुमार भी विपुलाचल से मुक्त होगये ।
- भगवान महावीर के सभी गणधर विपुलाचल से ही मुक्त हुए ।
—प्रतिम केवलो जम्बू स्वामी का निर्वाण भी विपुलाचल से ही हुआ, ऐसी भी मान्यता है । -उज्जयिनी नरेश धृतिषेण ( मुनि अवस्था का नाम काल सन्दीव), पाटलिपुत्र नरेश वैशाख, विद्युच्चर, गन्धमादन आदि अनेक मुनियों ने राजगृह के इन्हीं पर्वतों के मुक्ति प्राप्त की थी।
- भगवान महावीर को ऋजुकूला नदी के तट पर वंशाख शुक्ला दसमी को केवलज्ञान हुआ था। देवों ने तत्काल समवसरण की रचना को । किन्तु गणधर न होने के कारण भगवान की दिव्य ध्वनि नहीं खिरी। तब इन्द्र वेष बदलकर इन्द्रभूति गौतम के पास पहुँचा और किसी उपाय से उन्हें भगवान के समवसरण में लेगया । गौतम भगवान के चरणों में पहुंच कर अभिमान रहित होकर मुनि बन गये। तभी विपुलाचल पर श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को भगवान की प्रथम दिव्य ध्वनि खिरी और धर्म चक्र प्रवर्तन हुआ । इस समय अन्तिम तीर्थंकर महावीर का धर्मशासन प्रवर्त रहा है, इसलिये उनके शासन के अनुयायियों के लिए न केवल इस प्रथम दिव्य ध्वनि का, अपितु विपुलाचल का भी विशेष महत्व है। इस बात से विपुलाचल का महत्त्व जैन शासन में कितना हो गया, इसका मूल्याङ्कन करने के लिए यहाँ एक ही बात का उल्लेख करना पर्याप्त होगा। पौराणिक साहित्य में किसी कथा के प्रारम्भ में ' कहा जाता है— 'विपुलाचल पर भगवान महावीर का समवसरण श्राया हुआ था। मगध नरेश श्रेणिक विम्बसार भगवान के दर्शनों के लिए पहुँचे। उन्होंने भगवान की वन्दना की भौर अपने उचित स्थान पर बैठ गये । फिर उन्होंने गौतम गणधर से जिज्ञासा की । तब गौतम गणधर बोलें।' इस प्रकार प्रत्येक प्रसंग का प्रारम्भ होता है । गौतम गणधर से प्रश्न केले श्रेणिक महाराज ने ही नहीं पूछे थे, मौर भी अनेक व्यक्तियों ने पूछे थे। उनसे केवल विपुलाचल पर ही प्रश्न नहीं पूछे गये थे, अन्य स्थानों पर भी पूछे गये थे। किन्तु दिगम्बर परम्परा में कथा कहने की एक मपनी शैली रही है मौर उस शैली में बिपुलाचल को विशेष महता दी गई है। संभवतः इसका कारण यही रहा है कि इन्द्रभूति गौतम जैसे प्रकाण्ड विद्वान् का गर्व यहीं श्राकर गलित हुआ, यहीं उन्होंने मुनि दीक्षा ली और फिर यहीं भगवान की प्रथम धर्म देशना हुई, जिससे धर्म का विच्छिन्न तीर्थं यह कोई सामान्य घटना नहीं थी। किसी धर्म के इतिहास में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है ।
पुनः प्रवर्तित हुआ । — मुनि सुकौशल और मुनि सिद्धार्थ ( सुकौशल के पिता) को राजगृह के पर्वत से पारणा के लिए नगर को जाते हुए मार्ग में व्यांनी ( सुकौशल की पूर्व भव में माता जयावती) ने मार डाला। दोनों मुनि समता भाव से मरे मौर सर्वार्थसिद्धि विमान में महमिन्द्र हुए।
राजगृह पर यद्यपि शताब्दियों तक हरिवंशी नरेशों का शासन रहा, किन्तु उसकी प्रसिद्धि सर्वप्रथम