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भगवान सुमतिनाथ
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पंच अनुत्तर विमानों में से दूसरे वैजयन्त विमान में प्रहमिन्द्र था। मैंने वहाँ सभी प्रकार की सुख सामग्री का भोग किया किन्तु मेरे दुःखों का अन्त नहीं श्राया और यह मनुष्य भव पाकर और तीन ज्ञान का धारी होने पर भी मैं इन्द्रिय-भोगों में फंसा रहा। फिर साधारण जन इन्द्रियों के भोगों को ही सर्वस्व मान बैठता है तो इसमें आश्चर्य क्या है। मुझे अहितकर इन्द्रिय-भोगों को छोड़कर
दीक्षा कल्याणक
आरम-हित करना चाहिए।
भगवान के मन में वैराग्य भावना को जानकर सारस्वत आदि आठ प्रकार के लोकान्तिक देवों ने भगवान के विचारों की सराहना की। देवों ने उन्हें पालकी में बैठाकर नगर के बाहर सहेतुक वन में पहुँचाया। वहाँ भगवान ने एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण कर लिया। संयम के प्रभाव से उन्हें उसी समय मन:पर्ययज्ञान हो गया। दूसरे दिन के दर्या के लिए सौमनस नामक नगर में गये। वहाँ पदम राजा ने पढ़गाह कर भगवान को भाहार दिया ।
केवलज्ञान कल्याणक - भगवान बीस वर्ष तक मौन रहकर तपस्या करते रहे। तदनन्तर उसी सहेतुकं वन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे उन्होंने दो दिन का उपवास लेकर योग निरोध किया। फलतः चैत्र शुक्ला एकादशी के दिन सन्ध्या समय भगवान को केवलज्ञान प्राप्त हुमा । देवों ने भाकर भगवान के ज्ञान कल्याणक की पूजा की।
भगवान का परिवार - भगवान के अमर मादि ११६ गणधर थे। इनके अतिरिक्त २४०० पूर्वधारी, २५४३५० शिक्षक, ११००० भवधिज्ञानी, १३००० केवलज्ञानी, ८४०० विक्रिया ऋद्धिधारी, १०४०० मनः पर्ययज्ञानी, १०४५० वादी थे। इस प्रकार कुल मुनियों की संख्या ३२०००० थी । अनन्तमती मादि ३३०००० मजिकायें थीं । ३००००० श्रावक मौर ५००००० श्राविकायें उनकी भक्त थीं ।
मोक्ष कल्याणक - भगवान ने विभिन्न देशों में बिहार करके और उपदेश देकर अनेक जीवों का कल्याण किया। जब उनकी आयु एक माह शेष रह गई, तब वे सम्मेदगिरि पर पहुँचे। उन्होंने विहार करना और उपवेश देना बन्द कर दिया और एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमा योग धारण कर लिया। और चैत्र शुक्ला एकादशी को मघा नक्षत्र में शाम के समय निर्वाण प्राप्त किया । इन्द्रों और देवों ने लाकर उनके निर्वाण कल्याणक की पूजा की है. यक्ष-यक्षिणी - भगवान सुमतिनाथ के यक्ष का नाम तुंवर और यक्षिणी का नाम पुरुषदत्ता था |3 j