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भगवान दासुपूज्य
यहाँ भगवान महावीर, सुधर्म और केवली जम्बूस्वामी भी पधारे थे । जब केवली सुधर्मा स्वामी यहाँ पधारे थे, तब यहाँ का शासक अजातशत्रु, जो श्रेणिक बिम्बसार का पुत्र था, नंगे पांव उनके दर्शनों के लिये गया था । अजातशत्रु ने राजगृही से हटाकर चम्पा को अपनी राजधानी बनाया था ।
- यहाँ युधिष्ठिर सं० २५५९ ( ई० पू० ५४१ ) में जार के सरदार अंधवी श्रीदत्त और उसकी पत्नी संघविन सुरजयी ने वासुपूज्य भगवान का एक मंदिर बनवाया था। यह अनुश्रुति है कि नाथनगर में जो दिगम्बर जैन मन्दिर है वह वही पूर्वोक्त मन्दिर है ।
यहाँ एक मन्दिर सेठ घनश्यामदास सरावगी द्वारा संवत् २००० में बनवाया गया। इसमें विराजमान प्रतिमानों पर लेख नहीं है । लांछन है । जनश्रुति है कि ये प्रतिमायें ई० पू० ५४१ में निर्मित मन्दिर की हैं। किन्तु यह भी धारणा है कि पहले ये प्रतिमायें चम्पा नाले के मन्दिर में विराजमान थीं । भूकम्प आने से मन्दिर धराशायी हो गया, किन्तु प्रतिमायें सुरक्षित रहीं । वे प्रतिमायें यहाँ लाकर विराजमान कर दी गई। इनमें चार प्रतिमायें ऋषभदेव भगवान की हैं जिनके सिर पर विभिन्न शैली की जटायें या जटाजूट हैं और एक प्रतिमा महावीर भगवान की है । ये प्रतिमायें अत्यन्त प्राचीन हैं। संभव है, कुषाण काल की हों । किन्तु इसमें संदेह नही है कि ये प्रतिमायें जिस मन्दिर की थीं, वह मन्दिर चम्पापुरी का सबसे प्राचीन और मूल मन्दिर था ।
नाथनगर के वर्तमान मन्दिर में पूर्व श्रौर दक्षिण की ओर दो मानस्तम्भ बने हुए हैं। इनमें ऊपर जाने के लिये सीढ़ियों को, किन्तु दी गई है। पहले कहाँ चारों दिशाओंों में मानस्तम्भ बने हुए थे किन्तु दो शताब्दी पूर्व भूकम्प में दो मानस्तम्भ गिर गये । अवशिष्ट दोनों मानस्तम्भों का भी जीर्णोद्धार किया गया है। पूर्व वाले मानस्तम्भ के नीचे से एक सुरंग जाती थी जो १५० मील लम्बी थी और वह सम्मेदशिखर की चन्द्रप्रभ टोंक पर निकलती थी। किन्तु भूकम्प में जमीन धसक जाने से वह स्वतः बन्द हो गई । सरकारी कागजातों के अनुसार यह मन्दिर ६०० वर्ष प्राचीन है। मील है । इस नाले के किनारे एक दिगम्बर जैन मन्दिर है। इसमें वासुपूज्य चरणयुगल अंकित हैं । यही स्थान प्राचीन चम्पा कहलाता है ।
मन्दारगिरि - मन्दारगिरि भागलपुर से ३१ मील है। रेल श्रीर बस द्वारा जा सकते हैं। दि० जैन धर्मशाला पोंसी स्टेशन के सामने बनी हुई है। यहाँ से क्षेत्र दो मील दूर पड़ता है ।
मन्दारगिरि पर चम्पापुर का मनोहर उद्यान था। यह चम्पापुर के बाह्य अंचल में था । इसी वन में भगवान वासुपूज्य ने दीक्षा लो तथा यहीं पर उन्हें केवलज्ञान हुआ। इस प्रकार यहाँ भगवान के दो कल्याणक हुए थे।
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नाथनगर से चम्पानाला लगभग एक स्वामी की एक अन्य प्रतिमा और
धर्मशाला से एक फर्लांग चलने पर बी० सं० २४६१ में निर्मित सेठ तलकचन्द्र कस्तूरचन्द जी बारामती वालों का मन्दिर है । वहाँ से लगभग डेढ़ मील चलने पर तालाब मिलता है, जिसे पापहारिणी कहते हैं । मकर संक्रान्ति में यहाँ वैष्णव लोगों का मेला भरता है। सब लोग स्नान करके पहाड़ पर वासुपूज्य स्वामी के दर्शन करने जाते हैं ।
तालाब से भागे चलने पर कई कुण्ड मिलते हैं। पहाड़ को चढ़ाई एक मील से कुछ अधिक है। पहाड़ी के 'ऊपर बड़ा दिगम्बर जैन मन्दिर है। मन्दिर की दीवालें साढ़े तीन हाथ चौड़ी हैं। वेदी पर भगवान के चरण चिन्ह बने हुए हैं। मन्दिर के ऊपर डबल शिखर है। बड़े मन्दिर के निकट छोटा शिखरवन्द दिगम्बर जैन मन्दिर है । इसमें तीन प्राचीन चरण-युगल बने हुए हैं। इस मन्दिर से भागे एक शिला के नीचे चरण बने हुए हैं।
हिन्दू जनता में यह विश्वास प्रचलित है कि इसी मन्दराचल के चारों ओर वासुकि नाग को लपेट कर उससे समुद्र मन्थन किया गया था। पहाड़ के चारों ओर वासुकि नाग की रगड़ के चिन्ह भी बड़े कौशल से बना दिये गये हैं ।
१ - Inscription in Francklin's site of ancient Palibothra, pp. 16-17