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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
प्राप्त हो गया। तभी इन्द्र और देव आये। देवी ने प्रष्ट प्रातिहार्यो का वैभव प्रगट किया । समवसरण की रचना को । भगवान गन्धकुटी में कमलासन पर विराजमान हुए। उसी समय उनको दिव्य ध्वनि खिरी। यही उनका धर्मचक्र प्रवर्तन कहलाया ।
भगवान का परिकर-भगवान के मन्दर आदि पचपन गणधर थे। ११०० पूर्वधारी, ३६५३० शिक्षक, ४८०० अवधिज्ञानी, ५५०० केवलज्ञानी, ६००० विक्रिया ऋद्विधारी, १५०० मनःपर्ययज्ञानो, ३६०० दादी थे। इस प्रकार उनके संघ में कुल मुनि ६८००० थे। पद्मा आदि १०३००० अजिंकाय थों। २००००० धावक और ४००००० थाविकायें थीं।
निर्वाण कल्याणक-भगवान ने प्रार्यक्षेत्रों में विहार करके धर्म का उपदेश दिया । जब एक माह की प्राय अवशिष्ट थी, तब वे सम्मेदशिखर पहुंचे और एक माह का योग-निरोध किया। पाठ हजार छह सौ मुनियों के साथ प्रतिमा योग धारण किया। उन्होंने प्राषाढ़ कृष्णा अष्टमी के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में प्रातःकाल के समय मोक्ष प्राप्त किया। तभी सौधर्म आदि इन्द्रों और देवों ने भाकर भगवान का अन्त्येष्टि संस्कार किया और भगवान की स्तुति को।
उसी समय से भगवान की यह निर्वाण-तिथि-पाषाढ़ कृष्णा अष्टमी लोक में कालाष्टमी के नाम से पूज्य हो गई।
पक्ष-यक्षिणी-भगवान का सन्मुख यक्ष और पैरोटनी यक्षिणी है।
कम्पिला-भगवान विमलनाथ को जन्म-नगरी कम्पिला उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में कायमगंज तहसील में एक छोटा-सा गांव है । यह उत्तर रेलवे की अछनेरा-कानपुर शाखा के कायमगंज स्टेशन से पांच मील दूर है। सड़क पक्की है 1 स्टेशन पर तांगे गौर वस्ती में बसें मिलती हैं।
. इस नगरी में भगवान विमलनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये चार कल्याणक हए थे। जब मोधर्मेन्द्र ने समेरु पर्वत पर भगवान के चरण-तल में शकर-चिह्न को देखा तो उनका चिह्न शकर घोषित कर दिया। हदिप्रिय लोगों ने इस चिह्न के कारण कम्पिला को शूकर क्षेत्र घोषित कर दिया। भगवान की प्रथम कल्याणी बाणी इसी स्थान पर प्रगट हुई थी।
प्राद्य तीर्थंकर ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, महावीर तथा अन्य तीर्थकरों का समवसरण यहाँ पाया था।
कम्पिला भारत की प्राचीन सांस्कृतिक नगरी थी। भगवान ऋषभदेव ने जिन ५२ जनपदों की रचना की थी. उनमें एक पांचाल नाम का जनपद भी था, उसी पांचाल जनपद के दो भाग हो गये थे-अहिच्छत्र और कम्पिला । अहिच्छत्र उत्तर पांचाल को राजधानी थी और कम्पिला दक्षिण पांचाल की। महाभारत काल में उत्तर पांचाल के शासक द्रोण थे और दक्षिण पांचाल के शासकद्रपद थे। यहीं पर पाण्डु-पुत्र अर्जुन ने लक्ष्य-वेध कर द्रपद सूता द्रौपदी के साथ विवाह किया था।
इस कम्पिला या काम्पिल्य के निकट पिप्पलगांव में रत्नप्रभ राजा ने एक विशाल सरोवर और जिनमन्दिर का निर्माण कराया था। प्राज कल वह पिप्पलगांव कम्पिला से १६-१७ मील दूरी पर अलीगंज तहसील में है।
श्रीमद्भागवत में विष्णु भगवान के २२ अवतारों का वर्णन मिलता है। उसमें द्वितीय अवतार का नाम वराहावतार अथवा शूकरावतार बताया गया है। हिन्दू जनता उस क्षेत्र को, जहाँ यज्ञ पुरुष अर्थात् विष्णु भगवान ने अवतार लिया था, शकर क्षेत्र मानती है। शकर क्षेत्र को पहचान आजकल सोरों से की जाती है। यह स्थान कासगंज (जिला एटा) से ६ मील है। विविध तीर्थकल्प के अनुसार जनता ने विमलनाथ के शकर चिन्ह के कारण कम्पिला को शकर क्षेत्र मान लिया था। किन्तु आजकल सोरों को शकर क्षेत्र माना जाता है। ऐसा लगता है, विमलनाथ के शकर चिन्हें और विष्णु के शकरावतार में एकरूपता है। हिन्दू पुराणों में तथा श्रीमद्भागवत (तृतीय चौदह ) में शूकरावतार की कथा में बताया गया है कि जब पृथ्वी रसातल को चली गई, तब विष्णु भगवान ने उसके उद्धार के लिए शूकरावतार लिया ।
१. विविध तीर्थकल्प