________________
जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
'मासीत् पुरा मुनि श्रेष्ठः भरतो नाम भूपतिः । मार्षभो यस्य नाम्ने भरतखण्डमुख्यते ॥५॥
-नारद पुराण, पूर्व खण्ड, प०४८ 'येवो खषु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण मासीधेनेवं वर्ष भारतमिति ध्यपविशन्ति ।
-श्रीमद्भागवत ५॥४ 'मजनाभं नामंतव वर्ष भारतमिति यत प्रारम्य व्यपविशन्ति ।
श्रीमद्भागवत ५।६।३ तस्य पुत्रश्च वृषभो वृषभाव भरतोऽभवत् । तस्य नाम्नास्वियं वर्ण भारतं चेति कीत्पते ।।
-शिवपुराण ३७१५७ इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन मौर हिन्दू सभी पुराण ऋषभदेव के पुत्र भरत से अजनाभवर्ष अथवा हिमवत् क्षेत्रकामाम भारतवर्ष पड़ा, इस बात में एकमत हैं।
कुछ हिन्दू इतिहासकार इस सर्वमान्य तथ्य की उपेक्षा करके दौष्यन्ति भरत से भारतवर्ष के नामकरण का सम्बन्ध जोड़ने की चेष्टा करते हैं । वे केवल पापहवश ही ऐसा करते हैं, उनके पास इसके लिये कोई पौराणिक या दूसरे प्रकार का साक्ष्य नहीं है। इतिहास के तथ्य पाग्रहों से सिद्ध नहीं किये जा सकते। ष्यन्त-पत्र भरत के चरित्र का वर्णन श्रीमद्भागवत नवम स्कन्ध में विस्तार से दिया गया है। उसमें बताया है कि 'भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा मुनि को पुरोहित बनाकर गंगातट पर गंगासागर से लेकर गंगोत्री पर्यन्त पचपन पवित्र अश्वमेन्न यज्ञ किये । इसी प्रकार यमुना तट पर भी प्रयाग से लेकर यमुनोत्री तक प्रठहत्तर प्रश्वमेध यज्ञ किये......भरत ने सत्ताईस हजार वर्ष तक समस्त दिशाओं का एकछत्र शासन किया।' अन्त में वे संसार से उदासीन हो गये। इस सारे चरित्र में कहीं पर ऐसा एक भी शब्द नहीं पाया, जिससे यह ध्वनित होता हो कि उनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। जो लोग इतने स्पष्ट साक्ष्यों के बावजूद दुष्यन्त-पुत्र भरत से इस देश का नाम भारतवर्ष बताने का साहस करते हैं, उन्हें एक बात का उत्तर देना होगा। दुष्यन्त-पुत्र भरत चन्द्र बंश के शिरोमणि थे। उनसे पूर्व इक्ष्वाकु वंश, सूर्य वंश और चन्द्रवंश के हजारों राजाओं ने यहां शासन किया था। उन राजामों के काल में इस देश का नाम क्या था और क्या ऋषभ-पुत्र भरत से भारतवर्ष के नामकरण का सम्बन्ध जोड़ने वाले ये सारे पुराण मिथ्या सिद्ध नहीं हो जायेंगे ? किन्तु यह तो किसी को भी अभीष्ट न होगा। अतः इस निर्विवाद तथ्य को स्वीकार करना ही होगा कि इस देश का नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर ही भारतवर्ष पड़ा, न कि दुष्यन्त-पुत्र भरत के नाम पर।