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भगवान ऋषभदेव का लोकव्यापी प्रभाव
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वास्तविकता यह है कि ऋषभदेव का व्यक्तित्व सार्वभौम रहा है। उनकी इस सार्वभौम ख्याति और मान्यता के कारण भारत के सभी प्राचीन धर्मों ने उन्हें समान रूप से अपना उपास्य माना है। ऋषभदेव को जो स्थान और महत्त्व जैन धर्म में प्राप्त है, नही स्थान और
ग
तिक धर्म में भी प्राप्त भावनात्मक एकता है। एक में उन्हें आद्य तीर्थकर मानकर मोक्ष-मार्ग के प्रणेता स्वीकार किया है तो दुसरे के प्रतीक ऋषभवेव में उन्हें भगवान का अवतार मानकर मोक्ष-मार्ग के प्राद्य प्रणेता माना गया है । वेदों में उनका
वर्णन आलंकारिक शैली में किया गया है तो हिन्दू पुराणों में उनके चरित्र में कुछ अतिरंजना करदी। इन दोनों ही बातों की परत उघाड कर हम झांकें तो इनमें भी वही चरित्र मिलेगा जो जैन पुराणों में है। इसलिये हमारा विश्वास है कि जैन और वैदिक धर्मों की दूरी को कम करने के लिये भगवान ऋषभदेव की मान्यता एक सुदढ़ सेतु बन सकती है।