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भरत के सोलह स्वप्न
निष्ट के सूचक हैं। मैं तो स्थूल दृष्टि से हो इन स्वप्नों के फल का मूल्यांकन कर सकता हूँ । श्रतः सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान ऋषभदेव से इन स्वप्नों का फल पूछना उचित होगा ।
यह विचार कर वे प्रातः की क्रियाओं से निबट कर परिजनों-पुरजनों के साथ जहाँ भगवान विराजमान थे, वहाँ पहुँचे । वहाँ त्रिलोकीनाथ भगवान को देखकर उनके मन में भान्तरिक आल्हाद हुआ । उनके हृदय में भगवान के प्रति निश्छल निष्काम भक्ति की मन्दाकिनी प्रवाहित होने लगी। जिस समय वे भक्ति से गद्गद होकर भगवान की बन्दना करने लगे, उनके परिणामों में इतनी विशुद्धि और निर्मलता भई कि तत्काल उन्हें अवधिज्ञान को प्राप्ति हो गई । उन्होंने कोमल भावों से भगवान के कल्याणकारी उपदेशामृत का पान किया। फिर दोनों हाथ जोड़कर बड़ो विनय और भक्तिपूर्वक बोले
'प्रभो ! आज रात्रि के अन्तिम प्रहर में मैंने सोलह सपने देखे हैं। मुझे लगता है, ये स्वप्न अनिष्ट फल देने हैं। मैंने स्वप्न में (१) सिंह (२) सिंह का बच्चा (३) हाथी के भार को धारण करने वाला घोड़ा ( ४ ) वृक्ष, झाड़ियों के सूखे पत्ते खाने वाले बकरे (५) हाथी के स्कन्ध पर बैठा हुआ बन्दर ( ६ ) कौनों श्रादि के द्वारा उपद्रव किया हुया उलूक ( ७ ) आनन्द करते हुए भूत ( 5 ) मध्य में सूखा और किनारों पर जल से भरा हुआ सरोवर ( ६ ) धूलि धूसरित रत्न राशि (१०) लोगों से पूजित और नैवेद्यभक्षी कुत्ता (११) जवान बैल ( १२ ) मण्डल से युक्त चन्द्रमा (१३) शोभारहित योग मिलते हुए तो बैल (१४) से झादित सूर्य (१५) छायाहीन सुखा 'वृक्ष और (१६) पुराने पत्तों का ढेर देखे हैं । भगवन् ! इनका क्या फल होगा, आप दया करके मेरे सन्देह को दूर कीजिये ।
चक्रवर्ती का प्रश्न सुनकर भगवान ने उत्तर दिया- 'वत्स ! तूने जो स्वप्न देखे हैं, भविष्य में उनका फल अरिष्टकार । अब तू अपने स्वप्नों का फल सुन । प्रथम स्वप्न में तूने पृथ्वी पर अकेले बिहार कर पर्वत के शिखर पर प्रारूढ़ तेईस सिंह देखे हैं । इस स्वप्न का फल यह होगा कि अन्तिम तीर्थंकर महावीर को छोड़कर शेष तेईस तीर्थंकरों के समय में दुष्ट नयों की उत्पत्ति नहीं होगी। दूसरे स्वप्न में अकेले सिंह के बच्चे के पीछे हरिणों का झुण्ड 'चलते हुए देखा है । उसका फल यह है कि महावीर स्वामी के तीर्थ में परिग्रह को धारण करने वाले से बहुत कुलिंगी हो जायेंगे। तीसरे स्वप्न में बड़े हाथी के उठाने योग्य बोझ के भार से दबा हुआ घोड़ा देखा है, उससे मालूम होता है कि पंचम काल में साधु अपने मूल गुणों और उत्तर गुणों में असावधान हो जायेंगे । स्वप्न में सूखे पत्ते खाने वाले बकरों के समूह को देखने से प्रतीत होता है कि आगामी काल में मनुष्य सदाचार छोड़कर दुराचारी बन जायेंगे। पांचवें स्वप्न में गजेन्द्र के कन्धे पर बानर के देखने का फल यह होगा कि प्राचीन क्षत्रिय कुल नष्ट हो जायेंगे और नीच कुल वाले पृथ्वी का पालन करेंगे। छटवें स्वप्न में कोनों के द्वारा उलूक को त्रास दिये जाने से मनुष्य धर्म की इच्छा से जैन मुनियों को छोड़कर अन्य मतवाले साधुओं के पास जायेंगे। सातवें स्वप्न में नाचते हुए बहुत से भूतों को देखने से मालूम होता है कि प्रजाजन व्यन्तरों को सच्चे देव मानकर उनकी उपासना करने लगेगे । आठवें स्वप्न में मध्य में शुष्क और किनारों पर जल से भरे हुए सरोवर के देखने का फल यह है कि धर्म आर्य खण्ड से हटकर प्रत्यन्तवासी- भ्लेच्छ खण्डों में ही रह जायगा। नौवें स्वप्न में धूल धूसरित रत्नराशी देखने से प्रगट होता है कि पंचम काल में ऋद्धिधारी मुनि नहीं होंगे। दसवें स्वप्न में सत्कार किये हुए कुत्ते को नवेद्य खाते देखने का फल यह होगा कि व्रतहीन ब्राह्मण गुणी पात्रों के समान सत्कार पायेंगे। ग्यारहवें स्वप्न में उच्च स्वर से शब्द करने वाले तरुण बैल का बिहार देखने से सूचित होता है कि लोग तरुण अवस्था में ही मुनि पद में ठहर सकेंगे, अन्य अवस्था में नहीं । बारहवें स्वप्न में मण्डलयुक्त चन्द्रमा देखने का यह फल होगा कि पंचम काल के मुनियों में प्रवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान नहीं होगा । तेरहवें स्वप्न में परस्पर मिलकर जाते हुए दो बैलों के देखने से पंचम काल में मुनिजन साथ-साथ रहेंगे, अकेले बिहार करने वाले नहीं होंगे। चौदहवें स्वप्न में मेघाच्छन्न सूर्य के देखने का फल यह हाँगा कि पंचमकाल में केवलज्ञान उत्पन्न नहीं होगा । पन्द्रहवें स्वप्न में सूखा वृक्ष देखने से स्त्री-पुरुषों का चरित्र भ्रष्ट हो जायगा । और सोलहवें स्वप्न में जीर्ण पत्तों के देखने से महा नौषधियों का रस नष्ट हो जायगा । ये स्वप्न दूर