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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
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भोग करेगा ( ग्याप से संकी के भोग करने का अधिकार महामान्य चक्रवर्ती महाराज का है या फिर आपका। आपके रहते संसार के सर्वश्रेष्ठ कन्यारत्न का भोग आपका एक सेवक करे, इससे बड़ी अनीति संसार में कोई दूसरी हो नहीं सकती ।
सेवक की यह सलाह सुनकर युवराज अकेकीति को भी इस घटनाचक्र में अपना अपमान और अनीति दिखाई देने लगी । वह क्रोध से लाल आंखें किये और नथुने फुलाता हुआ गरज उठा - जिस मूर्ख ने मेरा अपमान किया है, उसने बिना जाने ही अपने काल को निमन्त्रण दिया है। इन कंपन और जयकुमार ने राज्यद्रोह किया है, उसका प्रतिकार श्राज युद्ध में ही होगा ।
उसके क्रोध को छाया में स्वयम्बर में निराश हुए अनेक राजा भी एकत्रित हो गये ।
उस समय श्रकीति को मंत्री ने बहुत समझाया - पहले आपके पितामह भगवान ऋषभदेव ने राज्य शासन करके एक मर्यादा स्थिर की यो उसके पश्चात् आपके पिता महाराज भरत ने उस मर्यादा को दृढ़तापूर्वक रक्षा की। उसके पश्चात् श्राप राज्य शासन का भार संभालेंगे। यदि आप ही उस मर्यादा का उलंधन करेंगे तो पृथ्वी मर्यादाहीन हो जायगी श्राप न्याय के रक्षक हैं । स्वयम्बर में बर का निर्वाचन कन्या को इच्छा पर निर्भर है। उसने जिसे भी चुना, उसके प्रति अन्य लोगों को ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, यही न्यायमार्ग है । यदि कोई इस मार्ग का उल्लंघन करता है तो आपको तो न्याय मार्ग की रक्षा करनी चाहिए। आपको स्वयं उस न्याय मार्ग का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। फिर ये महाराज अकंपन सब क्षत्रियों में पूज्य हैं, महाराज भरत तो 'इनका सम्मान अपने पिता के समान करते हैं। और यह सोमवंश भी नाश वंश के समान हो है । आपके वंश ने धर्म-तीर्थ की प्रवृत्ति की तो सोमवंश को भी दान तीर्थ की प्रवृत्ति करने का गौरव प्राप्त हैं। प्रोर फिर महाराज भरत को दिग्विजय के अवसर पर संसार ने जयकुमार को वीरता देखी हो है । यह तो तुम्हारे लिए सहायक ही सिद्ध होगा । आपकी यह अनीति सुनकर चक्रवर्ती भी श्राप पर असन्तुष्ट होंगे। एक सुलोचना हो तो संसार में कन्या - रत्न नहीं है। और भी कन्यारत्न हैं। आप चाहें तो मैं अनेक कन्या - रत्न आपके लिये ला दूंगा ।
किन्तु दुराग्रह र कोष में ग्रस्त अकोति ने किसी की एक नहीं सुनी और सेनापति को बुलाकर युद्ध की भेरी बजवा दी । भेरी का शब्द सुनते ही रथ, हाथी और अश्वसेना तथा पदाति सेना के असंख्य सैनिक वहां एकत्रित होने लगे । अर्ककीति गजारूढ़ होकर अनेक राजाओं और सेना से घिरा हुआ युद्ध के लिए चल दिया ।
महाराज अकंपन ने ज्यों ही यह समाचार सुना, वे सहसा इस अत और असंभव बात पर विश्वास नहीं कर सके | इन्होंने मंत्रियों तथा जयकुमार यादि से परामर्श करके एक चतुर दूत प्रकीति के पास दौड़ाया । उसने जाकर युवराज को समझाया किन्तु वह असफल होकर लौट आया। जयकुमार ने युवराज की पराजय चिन्तित प्रकंपन से कहा- आप निश्चिन्त रहें और यहीं रहकर सुलोचना को रक्षा करें। मैं
अभी इस नीतिमार्गी को बाँध कर लाता हूँ। फिर उन्होंने अपनी मेघ घोषा भेरी बजाई । भेरी hi वाज सुनते ही उनके प्रसंख्य सैनिक और उनके पक्ष के अनेक राजा लोग शस्त्रसज्जित होकर एकत्रित हो गए। उन्होंने भी शत्रु सेना की ओर कूच कर दिया। इधर महाराज अकंपन भी अपने पुत्रों और सैनिकों को साथ लेकर चल पड़े। सोमवंश और नाथ वंश के आश्रित राजाओं के अतिरिक्त्त पांच राजा भी अपनी सेना के साथ जयकुमार से या मिले। विद्याधर राजाओं में से आधे राजा भी अन्याय का पक्ष छोड़कर इस सेना में आकर मिल गए
दोनों ओर से मकर व्यूह, गरुड़ व्यूह प्रादि व्यूहों की रचना की गई। युद्ध के बाजे तुमुल घोष के साथ बजने लगे । युद्ध प्रारम्भ हो गया। वाणों की वर्षा से श्राकाश ढक गया। मनुष्य, हाथी, घोड़े कट-कटकर भूमि पर गिरने लगे । सारी रणभूमि में जयकुमार हो दिखाई पड़ रहा था। उसके वाणों ने नर्ककीति को सेना को निष्चेष्ट बना दिया | तब अर्कीति ने अपना हाथी आगे बढ़ाया। जयकुमार भी विजया हाथी पर आरूढ़ होकर आगे -बढ़ा 1. तभी उसका एक मित्र देव प्राया और उसे नागपाश तथा अर्धचन्द्र नामक वाण दिया जो अमोघ था। जयकुमार ने अपने बाकाण्ड धनुष पर वह वाण चढ़ाया श्रीर सन्धान कर दिया। उस एक ही वाण ने प्रकीति और