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त साहु "
और उस फोन मंडप में पर्यात् । नागपट्टी द्राची, यावर मुखादि करके माकीर्ण स्थान में इकेले ही ध्यान कररहे थे, तदनम्बर, राधा सुनि को देखकर भयभीत होमपा, और विचार करमे लगा कि मंदमामी ने पांस फे' स्वाद के वास्ते इस मुनि के मृग को मार दिया, सेा पह महत् यकाय हुआ, परि पर सुनि क्रोमित होगए वो फिर मेरे दुःख की सीमा न रहेगी, ऐसा सोच कर अश्व पर विसर्जन करके (स्पाम करके ) सुमि महाराज के समय आया, और सविनय बदना नमस्कार (प्रणाम) की मुख से ऐसे बोला कि हे भगवन् ! मेरे अपराध कोमा करा, मुनि मौन वृद्धि में ध्यान कररहे थे, इस कारण सम्मान राजा को हम भी बत्तर न दिपा, भतः अपने ध्यान में बैठे रहे, मुनि के न पाकने से रामा भयभीत होगया, तथा ममभ्रान्त होकर इस मकार भापण करन मा कि-हे भगवन् ! मैं कॉम्पिम्बपुर का संपत नामक राजा है, इसलिए ! आप मेरे मे मार्यादाप करें, हे स्वामिन् । भाप जैसा साधु कुद्ध होने पर अपने वप के पथ से सहस्रों, लयों, करोड़ों, पुरुषों का दा करने में समर्थ है, या आपको कुछ न होना चाहिए ।