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परियाना १४६
अरुण अग्यिाना—स० कि० दे० (सं० अरे ) अगति-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) अनरीति, अरे कह कर बोलना, तिरस्कार करना, कुरीति, बुरी रस्म । अपमान करना।
अरुंतुद वि० ( सं० अरु+तुद+ख ) क्रि० सं० ( हि० अडियाना ) अडाना। मर्म-स्पृक, मर्म-पीड़क, पीडाकारी, नाशक, अग्लि-संज्ञा, पु० दें (सं० अग्लिा ) १६ अपथ्य । मात्राओं का एक छंद विशेष (पिं०)। अरुंधती-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) वशिष्ठ मुनि अरिष्ट - संज्ञा, पु० (सं० ) दुःख, पीड़ा, की स्त्री, धर्म से व्याही गई दक्ष की एक
आपत्ति, अपशकुन, विपत्ति, दुर्भाग्य, कन्या, सप्तर्षि मंडल में वशिष्ठ तारे के अमंगल, पाप ग्रहों का योग, मृत्यु-योग्य, समीप रहने वाला एक छोटा तारा । धूप में औषधियों का खमीर उठा कर बनाया कहते हैं कि मृत्यु के ६ मास पूर्व यह तारा जाने वाला एक प्रकार का पासव, या मद्य, नहीं दीखता, नासिका का अग्र भाग।। कादा, वृषभासुर, ( कंप-द्वारा कृष्ण-वध के अरु-संयो० अव्य० दे० ( ब्र०) और, औ, लिये भेजा गया तथा कृष्ण से मारा गया पुनः, फिर । था, इसकी देह तथा इसका शब्द बड़ा ई-संज्ञा, स्त्रो० (दे० ) अरवी, घुइयाँ भयानक था ), उत्पात, उपद्रव, अनिष्ट- गर्भिणी स्त्री का चिन्ह, उसकी अरुचि। सूचक चिन्ह, सौरी, सूतिका गृह---- | अरुग्णा-वि० (सं० ) रोग-रहित, जो रोगी "अरिष्ट शव्यां परितोविमारिणा"- रघु०। या बीमार न हो। वि० (सं० ) दृढ़, अविनाशी, शुभ, बुरा, अरुचि---संज्ञा, स्त्री (सं० ) रुचि का अभाव, अशुभ, अनिष्ट ।
अनिच्छा, अग्नि-मांद्य का रोग, मंदाग्नि, अरिष्ट नेमि-संज्ञा. पु० (सं० ) कश्यप जिसमें भोजन की इच्छा नहीं होती. घृणा. प्रजापति का एक नाम, कश्यप का पुत्र जो नफ़रत, वितृष्णा, जी मचलाना। बिनिता से उत्पन्न हुआ था, राजा सगर के अचिकर---वि० (सं०) जो रुचिकर न ससुर, सोलहवाँ प्रजापति ।
हो, जा अच्छा न लगे। अरिहन-संज्ञा. पु० दे० (सं० अरिन ) वि० सं० अरुचिर-असुन्दर । शत्रुघ्न ।
अरुज-वि० (सं० ) निरोग, रोग-रहित । संज्ञा, पु० दे० अरहर।
अरुझना-अ० कि० (दे०) उलझना---- परिहा--वि० (सं० ) शत्रु का नाश करने । " उत अरुझे हैं पितु-मातुल हमारे "वाला।
श्र० ब०। संज्ञा, पु० (सं० ) लचमणानुज, शत्रन्न। कछ अरुझानी है करीरनि की झार मैं"" लच्छ करौं अरिहा समरथहि "--- ऊ० श०। राम चं० ।
"छूट न अधिक-अधिक अरुझाई" रामा० । भरी–अव्य० (सं० अयि ) स्त्रियों के लिये अरुझाना–स० क्रि० (दे०) उलझाना । संबोधन पद, री, एरी, अोरी (७०) ऐरी। फँपना, फाँसाना। संज्ञा, पु० दे० (सं० अरि ) शत्रु । अरुण-वि० (सं० ) लाल, रक्त । घरीठा-संज्ञा, पु० (दे० ) रीठा, एक स्त्री. अरुणा। प्रकार का फल । ।
संज्ञा, पु. ( सं० ) सूर्य । मरीता-वि० दे० (सं० अरिक्त ) जो सूर्य का सारथी, जो गरुड़ के ज्येष्ठ भ्राता नाली न हो।
थे, महर्षि कश्यप के औरस और विनिता के
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