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शय्या
विष्णु
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सेय्या (प्राकृत सेज्जा) ३. इकारान्त और उकारान्त पालि शब्दों के रूपों में विभक्तयन्त इकार और उकार का दीर्घ होकर क्रमशः ईकार और ऊकार हो जाता है, यथा ईहि, ऊहि, ईसु, ऊसु । इस प्रकार 'अग्गि' (अग्नि) और 'भिक्खु' (भिक्षु) शब्दों के रूपों में क्रमशः अग्गीहि, भिक्खूहि (तृतीया बहुवचन) एवं अग्गीसु, भिक्खूसु (सप्तमी बहुवचन) रूप होते हैं।
(४) यदि संस्कृत में इ और उ संयुक्त व्यंजन से पहले होते हैं, तो पालि में वे क्रमशः ए और ओ (ह्रस्व ए और ह्रस्व ओ) हो जाते हैं । उदाहरणसंस्कृत
पालि
वेण्हु (कहीं कहीं विण्हु भी) निष्क
नेक्ख उष्ट्र
ओट्ठ उल्कामुख
ओक्कामुख पुष्कर
पोक्खर (५) संस्कृत में जहाँ संयुक्त व्यंजन से पहले दीर्घ स्वर हाते हैं, वहाँ पालि में उनका रूप ह्रस्व हो जाता है, यह पालि भाषा का एक प्रसिद्ध नियम है, जिसका विवेचन हम दीर्घ स्वरों के परिवर्तन का विवरण देते समय आगे करेंगे। यहाँ यह कह देना आवश्यक है कि इस नियम के कारण संस्कृत के ए, ऐ तथा ओ, औ जब संयुक्त व्यंजनों से पहले आते हैं तो पालि में उनके रूप क्रमशः ह्रस्व ए तथा ह्रस्व ओ हो जाते हैं। उदाहरण: . श्लेष्मन् चैत्य
चेतिय ओष्ठ मौर्य
मोरिय .. (६) जब उपर्युक्त स्वर संयुक्त व्यंजनों से पहले न आकर अ-संयुक्त व्यंजनों के भी पहले आते हैं तो भी उनका परिवर्तन उपर्युक्त ह्रस्व स्वरूपों में ही हो जाता है, किन्तु उनके आगे आने वाला व्यंजन संयुक्त हो जाता है। उदाहरण-- एक
एक्क एवम्
एव्वं
सेम्ह
ओट्ठ