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प. पू. आचार्य देव श्री विजयधर्मसूरिजी म. (काशी वाला)के शिष्यरत्न पू. मुनिराज श्री विद्याविजयजी म. का
मेवाड़के संबंधमें अनुभव पूर्ण निवेदन
म्मयके अभाव तथा अन्य प्रवृत्तियों के कारण केवल थोड़े समय तक ही हमें मेवाड़ में विचरनेका सौभाग्य प्राप्त हो सका है। उस अनुभव के आधार पर मैं यह बात कह सकता कि मेवाड़ धर्मप्रधान और इतिहासप्रधान देश है। पहाडों तथा पत्थरों वाला देश होने पर भी-कांटों तथा कंकरों वाला देश होते हुए भी सरल तथा भक्ति वाला देश है। मेवाड जिस तरह धर्म प्रचार की भावना रखने वाले उपदेशकों के लिए उपयोगी है। उसी तरह ऐतिहासिक खोज करने घालोंके लिए भी सचमुच ही उपयोगी है। यहां न संघ सोसायटीके झगड़े हैं और न पदवियों की प्रतिस्पर्धा है। कोई भी साधु अपने चारित्रधर्ममें स्थिर रहकर शान्त वृत्तिसे उपयोग पूर्वक उपदेश दे, तो वह बहुत कुछ उपकार कर सकता है। उपकार करने के लिए मेवाड़ अद्वितीय क्षेत्र है। अपने निमित्त ग्राम ग्राममें क्लेश होने पर भी, घर घरमें आगकी चिनगारीयां उड़ने पर भी, गृहस्थों द्वारा अपमान तथा तिरस्कार सहन करने पर भी, गृहस्थों की साधुओं पर अश्रद्धा होने पर भी, 'अनि परिचयादवन्ना का अनुभव रातदिन करते रहने पर भी दुःख तथा आश्चर्यका विषय है, कि हमारे पूज्य मुनिराज व साध्वीजी महाराज, गजरात, काठियावाड़ को क्यों नहीं छोड़ते होंगे? और ऐसे क्षेत्रों में क्यों नहीं निकल पड़ते होंगे कि जहां एकान्त उपकार और शासनसेवाके अतिरिक्त दुमरी किमी चीज का नाम भी नहीं।
पूज्य मुनिबरो ! गजरात-काठियावाडको छोड़कर जरा बाहर निकलो और अनुभव प्राप्त करो और फिर देखोगे कि तुम्हारी आत्मा कितनी प्रपन्न होती है !
चरित्रकी शुद्धि, धर्मसे विमुख हुए लोगों को धर्म में लाना, अजैन वर्ग पर सच्चे त्यागकी छाया डालनी, आदि वागेका जब आपको अनुभव होगा, तब आपको इस वातका विश्वास हो जायगा कि वास्तविक उपकार का कार्य तो मेवाडमें ही होता है।
_अन्नमें 'मेरी मेवाड़ यात्रा' में आलेम्बित इम मंक्षिप्न अनुभव पर हमारे कोई भी साधुसाध्वीजी म. मेवाड में पधारने हेतु जाग्रत हो और ऐसे देशों में विचरने के उद्देश्यसे बाहर निकल पड़े, यही अन्तःकरगसे चाहता हुआ, अपने इस अनुभववृत्त को यहां खतम करके अपनी लेखनीको यहीं विराम देता हूं।
-विद्या विजय बरलुट (सिरोही. राज.) अपाढ़ सुदी १ वीर सं. २४६२ ('मेरी मेवाड़ यात्रा' पुस्तकसे साभार उद्धृत)
" मेवाड़ना अनमोल जवाहिर” ।
पुस्तक मां कवि भोगीलालनु निवेदन । ___जरा टाइम ( वख्त) लई मेवाड़ ना पुरातन जैन श्वे. मन्दिरो जोशो अने विचारशो तो जरूर तमारा आत्मा ने ख्याल आवशे के मेवाड़ शुं छे ? अने मेवाड़ ना बहादुर जैनों केवा हता! तेनु जरूर भान करावशे ।
मेवाड मां घणा ज पुराण किल्लाओ, तीर्थस्थानों अने प्राचीन मर्तिओ वगेरे घणु घणु दर्शन करवा लायक छ । तो फुरसत लइ जरा जोशी अने विचारशो। बने तो उद्धार करवा अगर कराववा मदद करशो । छेवटे कांई न बने तो लागणी भर्या बे अश्रओ पाड़ी अश्वास लयो।
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