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(१०) जिसमें प्रजापति विराट परभेष्टी अग्नि, वानर, आदि सब देवता पंक्ति. सहित विराजते हैं।
(यस्मिन् विगह परमेष्ठो प्रजापति रनिश्वानरः सह पंन्याथिलः ।। 1 9 1 )
(११) वह वरुण है. वही सायंकाल अग्नि हो जाता है, वह प्रातःकाल मित्र होता है. वही सविता होता है, वही मध्यान के समय इन्द्र होता है। ( स बरुणः सायमग्निर्भवति, समित्रो भवति प्रातरूयन
॥३ । १३ ।।) वहीं पाता. विधाता, अर्यमा. वरुण, रुद्र तथा महादेव है। स धाता विधर्ता स वायुर्नभ उच्छुिनम् ।
सोऽयमा स वरुणः स रुद्रः समहादेवः । सोऽग्नि से उ सूर्य स उ एव महायमः । ४ । ३-५
(१२) उसी से ऋचायें श्रादि लोक लोकान्तर श्रादि सब उत्पन्न हुये हैं।
(५३) वह दो, नीन. चार आदि नहीं होता. यह एक ही हैं । (म एप एक एक वृद्धक एवं ॥ ४॥ २०-)
सूर्य पूजा का प्रचार सूर्योपासना का आज कोई विशेष सम्प्रदाय नहीं है तो भी सूर्य की पूजा में लोगों का भारी विश्वास पाया जाता है। रोग दुःश्व नाश के लिये भाषाके 'सूर्यपुराण के पाठ करने वाले अनेक दृष्टिगत होते हैं और कुछ ब्राह्मण पंडित दोपहर में गायत्री पाटके