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(रोहितो था पृथिवीजजान, तत्र तन्तुं परमेष्ठी ततान॥६॥)
(२) रोहित (उदय होते हुये सूय) से देवता. सृष्टि की रचना करत है। (तस्माद् देवा अधि सृष्टीः सृजन्ते ।। २५॥) (३) सूर्य के सात हजार जन्मों का वर्णन करता हूं।
(४) सूर्य, अन्तरिक्ष में रहते हुए भी यहाँ के पदार्थों को जानते हैं।
(५) देवता पूर्वकाल में इसको ब्रह्म जानते हैं। पुरा ब्रह्म देवा अमी विदुः ॥
(६) वह सब ओर मुख वाला. और सब ओर हाथों वाला प हथेलियों वाला है। यह अपनी दोनों भुजाओं से इकठ्ठा करता है, पंखों से बटोरता है । उसी एक सूर्य देवने द्यावापृथिवी को उत्पन्न किया है। (द्यावा पृथिवीं जनयन देव एकः ।। २ । २६)
(७) यह जगन का आत्मा है, मित्र, वरुण, अग्नि आदि देवों का चक्षु है। (सूर्य प्रारमा जगतस्तस्थुषश्च ।। २ । ३६ ।।) ( चबुर्मित्रस्य वरुणस्याम्नेः ।। ।।-II) (८) सूर्य सर्व व्यापक और सबका द्रष्टा व ज्ञाता है।।५।। (6) सूर्य से सब प्राणी जीते हैं वही सबको मारता है।
(मारयति प्राणयति यस्मात् प्राणन्ति भुवनानि विश्वाः || ३ | ४॥)