Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका, मू ६ धारिणीदेवीस्वप्नस्वरूपनिरूपणम्
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निद्राणा२ - पुनः पुनरषन्निद्रामनुभवन्ती सती 'एगं महं' एकं महान्तम् = अति विशाल 'समस्से' सप्तोत्सेधं = सप्तहस्तोछ्रायं 'रययकूड सन्निहं' रजतकूटसन्निर्भरौप्यशिखर सदृशम् अतिश्वेतमित्यर्थः 'सोम' सौम्यं = प्रशस्तं 'सोमागारं ' सौम्याकारं = सर्वाङ्गसुन्दरं लीलायंत' लीलायन्तं = क्रीडन्तं 'जंभायमाणं' जृम्भमाणं= कृतजृम्भं 'नहयलाजो ओयरंतं' नभस्तलादवतरन्तम् = आकाशादागच्छन्तं 'मुहमइगये' मुखमतिगर्त = मुखे प्रविशन्तं 'गयं' गर्ज हस्तिनं धर्मकर्मप्रभावमभवं हुई उस धारिणी देवीने (एगंमहं) एक अति विशाल ( सत्तुस्सेह) सात हाथ ऊँचे (रययकूडसन्निह) चांदी के पर्वत के शिखर के समान अति श्वेत ( सोमं ) प्रशस्त (सोमागारं ) सर्वाङ्ग सुन्दर (लीलायंतं) क्रीडा करते हुए ( जंभायमाणं) जंभाते हुए तथा ( गगणयलाओ ओयरंतं) आकाशतल से उतरते हुए (ग) हाथीको (मुहमइगयं) मुख में प्रवेश करते हुए देखा। सूत्रस्थ " पूर्वरात्रापरकाल समय " पद यह प्रकट करता है । कि रात्रि के प्रथम प्रहर में देखा गया स्वम १ वर्ष में फल देता है । द्वितीय महर में देखा गया स्वप्न आठ मास में फल देता है तथा नव माह और ७|| दिन रात जब समाप्त हो जाती है तब सन्ततिका प्रसव होता है । स्वमशास्त्र में यही बात उक्तंच करके कही हुई हैं:
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रात्रेः प्रथमे यामे इत्यादि - इसका भाव इस प्रकार है-रात्रि के प्रथम महर तथा द्वितीय प्रहर में देखा गया स्त्रम क्रमशः १ वर्ष तथा मास में जैसे फल देता है वैसे ही तीसरे प्रहर में देखा हुआ स्वन छ माह में तथा चतुर्थ प्रहर में देखा हुआ स्वप्न १ पक्ष में फलित होता है ।— दुधना ओअं जाती ते धारिणी देवीओ ( एगं महं) मे भूम विशाण (सत्तुस्से हैं) सान हाथ अंया ( रययकूटसन्निर्ह) थांहीना डुगरना शियर नेवा पूर्ण धोणा (सोम) प्रशस्त (सोमागारं ) सर्वाङ्ग, सुन्दर (लीलायंतं) डीडा उश्ता ( जंभायमाणं) मासु खाता तेभन (गगणगलाओ ओयरंतं) माअथभांथी उतरता (गयं) हाथीने (हम) भी भां प्रवेशतो यो सूत्रमां आवेला "पूर्वरात्रापरत्र कालसमय" આ પત્ર એમ બતાવે છે કે રાતના પહેલા પહેારમાં જોયેલું સ્વપ્ન એક વર્ષમાં ફળ આપે છે અને બીજા પહેારમાં જોએલ સ્વગ્ન આઠ માસમાં ફળ આપે છે, તથા નવમાસ અને સાડા સાત (ગા) દિવસ રાત જ્યારે પૂરા થાય છે. ત્યારે સંતતિના પ્રસવ થાય છે. સ્વપ્નશાસ્ત્રમાં એજ વાત ઉંકત ચ’કરીને કહેવામાં આવે છે:~ “रात्रेः प्रथमे यामे इत्यादि" सेना आशय या प्रमाणे छे-शत्रिनां पडेसा બીજા પહેારમાં જોયેલું સ્વપ્ન અનુક્રમે એક વર્ષ અને આઠ માસમાં ફળ આપે છે, તેમજ ત્રીજા પહેારમાં જોયેલું સ્વપ્ન છ માસમાં અને ચાથા પહેારમાં જોયેલું સ્વપ્ન
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