Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका मू. १२ अकालमेघदोहद निरूपणम् 'इन्थिसंध वरगएणं' हस्तिस्कन्धवरगतेन, इदं राज्ञो विशेषणम्, हस्तिरत्न स्कन्धमारूढेन राज्ञेति भावः 'पिओ' पृष्ठतः = पृष्ठदेशे, 'समणुगच्छ पाणी श्री' समनुगम्यमानाः पृष्ठदेशे समनुगम्यमाननृपसहिता इत्यर्थः, 'चाउरंगिणीए सेणार' चतुरङ्गिण्या सेनया, चतुरङ्गिणीं सेनां वर्णयति - 'महयाहयाणीएणं' महता हयानी केन= विशालतुरगबलेन महच्छन्दः सर्वत्र योजनीय:, तेन 'गयागीएणं' गजानीकेन = विशालगजबलेन 'रहाणी एणं' रथानीकेन = विशालरथबलेन, 'पायताणीपण' पदात्यनीकेन = प्रभूत पदातिबलेन, एवं भूतया चतुरङ्गिण्या से नया समनुगम्यमानाः इति पूर्वेण सम्बन्धः, तथा 'सविङीए' सर्वऋद्धया= सकलराजविभवदपया 'सब्बज्जुईए' सर्वधुत्या= वस्त्रालङ्कारादि सकलप्रभया 'जाव' यावत् 'निग्घोसणादियरवेणं' निर्धोपनादितरवेण तत्र - निर्घोषः शंखवाया दीनामव्यक्तो महाशब्दः, नादितः = मनुष्यकृत मंगलशुभशब्दः जयविजयादिरूपः श्रेणिक राजा के साथ कि जो (हत्थिखंधवरगएणं) हस्तिरत्न पर आरूढ हैं (पिओ समणुगच्छमाणिओ) पीछे से अनुगम्यमान हैं - अर्थात् हस्तिरत्न पर आरूढ हुए श्रेणिक के साथ अन्य बैठकर चल रहीहों- (महया हयाणीएणं, गयाणीपणं, रहाणीपणं पायताणीपणं चाउरंगिणीए सेणाए) तथा जिनके पीछे२ घोडोंवाली, हाथीयोंवाली, रथोंवाली पदातियोंवाली विशाल चातुरंगिणं चल रहीं हो, तथा (सव्विड़ीए, सब्वज्जुईए जाव निग्घोसणादियर वेणं रायगि नगरं ) और जो अपनी सकल राज विभवरूपऋद्धि से वस्त्र अलंकार आदिरूप सकल घुति से, निर्घोषरव से शंख, वाद्य आदिकों के अव्यक्त महान् शब्दो से एवं नादितरत्र से - मनुष्यों द्वारा उच्चरितजयविजय रूप मांगलिक शुभ शब्दों से राजगृह नगर को देर नहीं हुई कि जो थोते विचारे छे ! या रीते हुं पशु (सेणिएणं रन्ना सद्धिं श्रशि राजनी साथे- भेगो (हस्थिखंधवरगएणं) उत्तम हाथी पर सवार होय, (पिट्ठओ समणुगच्छमाणीओ) अने तेभनी पाछ्ण चाछ्ण जीन सेवडी यागु अनुगमन કરતા હાય એટલે કે બીજા સેવકે પાછળ પાછળ શ્રેષ્ઠ હાથીઓ ઉપર સવાર થઈને भावता होय, (महया हयाणीएणं, गयाणीएणं, रयाणीएणं पायताणी - एणं चाउरंगिणीए सेणार) तेभनी पाछण हाथी, घोडा रथ मने पायहणोनी विशाल चतुरंगिड़ी सेना यासती हाय, (सबिट्टीए सम्बज्जुईए नाव निग्धोस नादियरवेणं रायगिहं नगरं ) भने ? पोतानी संपूर्ण राज्वैलव३य ऋद्धिथी, વસ્ત્ર અને ઘરેણાંઓની પ્રભાથી, નિદ્યોષથી, શંખ અને વાજા વગેરેના અવ્યકત ઘોંઘાટથી, નાતિરવથી, મનુષ્યા દ્વારા ઉચ્ચરિત થતા માંગલિક ‘જય જયકારોથી’ रामगृहनगने लेती है ? (सिंघांडगतियचउक्कचच्चर महापहप हेसु श्रगट भां
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