Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. १ सु. १४ अकालमेघदोहदनिरूपणम्
धारिणीए देवीए अयमेयारुवस्स अकालदोहलस्स मणोरहसंपत्ती भविस्स कि सेणियं रायं ताहिं इट्टाहि कंताहिं जाव समासासइ। तएणं सेणिए राया अभएणं कुमारणं एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठे जाव अभयकुमारं सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारिता सम्माणित्ता पडि. त्रिसज्जेइ || १४ || सू०||
टोका - ' तयानंतरं इत्यादि । तदनन्तरम् अभयकुमारः स्नातः कृतवलिकर्मा यावत् सर्वालङ्कारविभूषितः 'पायबंदए' 'पादवन्दकः = पितृपादलन्दनार्थी 'पहारेस्थगमगाए' माधारयद् गमनाय = नृपचरणवन्दनाय मया गन्तव्यमिति निश्चयं कृतवान् । ततः खलु सोऽभयकुमारो यत्रैव श्रेणिको राजा तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य श्रणिकं राजानम् अपहृतमनःसंकल्पं यावत् पश्यति । दृष्ट्वा अयमेतद्रूपः =वक्ष्यमाणस्त्ररूपः अध्यात्मिकः = अत्मगतः चिन्तितः, कल्पितः प्रार्थितः, मनोगत: संलल्पः 'समुप्पज्जित्था' समुदपद्यत = समुत्पन्नः - कीदृशः संकल्पः
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'तपाणंतरं अभयकुमारे' इत्यादि
टीकार्थ - (तयातरं) इस के बाद (हाए) स्नान करके ( कयबलिकम्मे ) जिमन बलिकर्म कौवे आदि को अन्नादि भाग देने रूप क्रिया कर लिया है और जो ( सच्चाकारविभू सिए) समस्त अलंकारों से विभूषित हो चुके हैं ऐसे (अभय कुमारे) अभयकुमारने (पायबंदए गमणए पहारेत्थ) उस समय पिता के चरणों की वंदना करने का निश्चय किया । (तरणं से अभयकुमारे जेणेव संगिए राया तेणेव उवागच्छ) निश्चयानुसार वे जहाँ अपने पिता श्रेणिक राजा थे) वहां आये (उवागच्छित्ता सेणियं रायं ओहगमणसंकल्पं जाव शियायमाणं पासह) आते ही उन्होंने श्रेणिक राजा को अपहृतमन संकल्पाला ओर चिन्तातुर देखा - (पासिता अयमेारूवे अज्झत्थिए चि
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"मारे इत्यादि"
टीअर्थ - तमानंतर) त्यारमाढ (हाए) स्नान उरीने (कचल्लिकम्मे ) अगा वने शोन्नमा अर्थीने भो सिम्म पु३ छ, भने लेगो (मन्त्रालंकार विभूसिए) समस्त भारी द्वारा शोली रह्या छे, भने ( अमकुमारे) अलयकुमारै पायर र हारेत्य) पिताना थरोमां बहन उखानो निश्चय यो ( से अमारे जेगेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छ) घोताना निश्चय प्रमाणे अभयकुमार न्यां श्रशिशन्न हता त्यां गया. ( उवागच्छित्ता सेर्णियं रायं ओध्यमरं कप्पं नाव झियायाणं पासइ) त्यांने तेथे शि शब्लने हतोत्साही थानेि सब्य विल्पोमां चिंतामन या. (पाहिना अग्रमेवावे