Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्म कथासूत्रे
देवदत्तस्य दारकस्य कुत्रापि श्रुतिं वा तं वा प्रवृत्ति वा अलभमानो यत्रैव स्वकं गृहं तत्रैवोपागच्छति उपागत्य 'महत्थं' महार्थ = बहुमूल्य 'पाहुड' माभृतम् = उपहारं गृह्णाति, गृहीत्वा यत्रैव 'नगरगुत्तिया' नगर गढ़का:= नगररक्षकाः कोट्टपाला इत्यर्थः तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य तन्महाथ प्राभृतम् 'उवणे' उपनयति तेषां समीपे स्थापयति, उपनीय एवमवादीत् एवं खलु देवानुमियाः ! मम पुत्रो भद्राया भार्याया आत्मजो देवदत्तो नाम दारकः 'इट्ठे इष्टः = अभिलषितः यावत् ' उंबर पुष्पंपिच' दुल्लहे सवणयाए किमंगपुणपासणयाए' उदुम्बरपुष्पमित्र दुर्लभः श्र करने में लग गया - परन्तु ( देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुवा पउत्तिं वा अलममाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छ) देवदत्तदारक की उसे कहीं पर भी कुछ भी खबर नहीं मिली, छिका आदि चिह्न भी उसका उसे कहीं दिखलाई नहीं दिया-- और न उसकी किसी बात का ही ठीक २ उसे पता पडा। इस तरह निराश होकर वह अपने घर पर आ गया । ( उवागच्छित्ता महस्थ पाहुडं गेहड़, गेहिना जेणेत्र नगरगुनिया, तेणेव उवागच्छइ) घर आकर उसने बहुमूल्य प्राभृत लिया और लेकर जहाँ नगर के रक्षक कोट्टपाल थे वहां गया - ( उवागच्छित्ता तं महत्थं पाहुडं उच्णे, उबणिता एवं व्यासी) - जाकर उसने वह बहुमूल्य नजराना उन्हें भेटमें दिया-- देकर फिर इस प्रकार बोला ( एवं खलु देवगणुपिया ! मम पुते भद्दाए भारियाए अत्तए - देव दिन्ने नामं दारए इ जाव उंचरपुप्फीपेच दुल्लहे मरणयाए किमंग पुण ४२वा लाग्यो | ( देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुहवा खुड़वा पर्सि वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छा) जाण ठेवहत्त तेने ज्यांय દેખાયા નહિ. બાળકના છીંક વગેરેના અવ્યકત ચિદ્રા પણ કાઇપણ સ્થાને સંભળાયા નહિ. આ રીતે ધન્ય સાÖવાહને બાળક દેવદત્ત વિશેની ઘેાડી પણ માહિતી મળી शडी नहि. अते निराश थने ते पोताने घेर पाइयो (उवागच्छिता महत्थ पाहुड गेव्हइ, गेण्डिता जेणेव नगर गुणाया, तेणेव उवागच्छइ) घेर मावीने तेले जडु द्रव्यबधु भने नगररक्ष अरबाजनी पाले गया. ( उनागच्छिता त महत्थ पाहुड उवणे, उवणित्ता एवं वयासी) कहांने तेले महुम्भिती नन्नराणां अटवाजने लेटभां आभ्यां ने उर्छु– ( एवं खलु देवाणुपिया ! मम पुतं भद्दा भरिया अतए देवदिन्ने नाम दारए इडे जाव उवरपुष्फ पिव दुल्लहे सवणयार किमंग पुणपासणयाए ? ) हे हेवानुप्रियो ! सांभा
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