Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २. धन्यस्य विजयेन सह हडिबन्धनादिकम् ६४३ 'जाव जलं' यावावलति यावत्-मादुष्पभातायां रजन्यांप्रभातसमये दिनकरेचलति सूर्योदये सति पुनर्विपुलमशनं ४ यावत्- उपस्कृत्य पान्थकाय दामचेटाय भोजनपिटकं ददाति, स चारकशालायां गत्वा धन्यस्य सार्थवोहस्य भोननपात्रे परिवेसेइ' परिवेषयनिनिदधाति । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहो विजयस्य तस्करस्त्र तस्माद् विपुलाद् अशनपानखाद्यम्वाद्यात् संविभागं करोति, स्वयं च भुक्ते । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहः पान्थक दासवेट विमञ्जइ' विमर्जयति गृहगमनायाऽऽदिशति । ततः ग्वलु स पान्थको भोजनपिटकं गहीत्वा 'चारगाओ' चारकात्यारागारात् प्रतिनिष्का मति, प्रतिनिष्क्रम्य राजगृ: नगरं मध्यमध्येन यत्रैव स्वकं गृहं यत्रैव भद्रा गेखे हुए और परमशुचीभूत हो कर उसी अपने स्थान पर आ गये। (तएणं मा भद्दा कल्लं जाव जलं ते विउलं असणं ४ जाव परिवेसे:) दूसरे दिन जब प्रातःकाल हुश्रा और मूर्य प्रकाशित हो चुका तब उस भद्राने अशनादि रूप चतुर्विध आहार को विपुलमात्रा में बनाकर उसे भोजन के डिब्बे में रख पांथकदास चेटक के हाथ धन्यसार्थवाह के पास कारागार में भेजापथिक दासचेटकने पहिलेकी ही तरह होकर उसे थालीमें भोजन के लिये परोसा-परोस कर उमने सेठ के दोनों हाथों को धुलाया-(तएणं से धणे सत्यवाहे विजयम्स तकरम्म तओ विउलाओ अमण४संविभागं करेड) बाद में उस धन्यसार्थवाहने विजय चौर के लिये उम अपने चार प्रकार के आहार में से विभाग कर दिये (तएणं से धण्णे सत्यवाहे पंथगं दास चेडयं विसज्जेह) धन्य सार्थवाहने बाद में उस पांधक दाम चेटक को वहां से वापिस कर दिया। (तएणं से पंथए भोयणपिडगं गहाय चारगाओ ४ जाव परिवेसेइ) alon हिसे सवार थयु भने सूर्य उदृय पाभ्यो त्यारे ભદ્રા ભાર્યાએ પુષ્કળ પ્રમાણમાં અશન વગેરે ચાર જાતના આહાર બનાવી તે એક સ્વચ્છ ડબામાં મૂકીને પાંથકદાસ ચેટકને જેલમાં ધન્ય સાર્થવાહની પાસે પહોંચાડવા આજ્ઞા કરી. પહેલાની જેમ જ પાંથક દાસ ચેટકે ત્યાં જઈને થાળીમાં જમવાનું पारस्यु पारसीन तेथे शेठना मने डाय घावाव्या. (तएण से धणे सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स तो विउलाओ असण ४ सविभाग करेइ) त्यार पछी ધન્ય સાર્થવાહે વિજય ચોરને માટે ચાર જાતના આહારમાંથી ભાગ કરી આપે. (तएण से धणे सत्याहे पंथग दासचेडगं विपज्जेड) त्या२ पछी धन्य साथ वा पांय हास थेटने ३२ पाछ। वज्यो. (तपण' से पंधर भोयगपिडग गहाय चारगाओ पडिनिक्वमइ) पां५४ ५ २४४ मानना आने
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