Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 724
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१२ साताधर्म कथानमत्र पोतकः शिशुः ‘एत्थ' अत्र-अस्मिन् स्थाने 'जाए' जानः प्रादुरभूत् । ततस्तदनन्तरं खलु स जिनदत्त पुत्रस्त मयूरपोतकं पश्यति दृष्ट्वा च ह्रष्ट तुष्टोऽतिशयेन प्रष्टस्तदा 'मऊरपोसए मयुरपोषकान-पालकान् शब्दयात, शब्दयित्वैवंक्ष्यमाणपकारेणावादीन्, 'तुम्भेगं' यूयं देवाणुप्रिम। इमं मयूरपोतकं बहुभिः 'मऊरपोसणपाउग्गेहि मयूरपोपणप्रायोग्यैः-मयूरस्य पोषणाय प्रायोग्यः समथैः 'दव्वेहि' द्रव्यैः-द्रव्यविशेषणैः 'अणुपुत्वेणं' आनुपूर्या -अनुक्रमेण 'सारक्खमाणा' संरक्षन्त्यः पोषणादिना 'संगोवेमाणा' संगोपायन्तः, मारिदिकृतोपद्रवतः 'संबड्डे' संवर्द्धयत, वृद्धि प्रापयत 'नटुल्लग" नृत्यं च मयूरी अंडक अनुद्वय॑मान होता हुआ--अपने स्थान से थोडासा भी चाल्यमान नहीं होता हुआ और टी, टी, इस प्रकार के शब्द से भी शब्दायमान नहीं किया गया होता हुआ समय आ जाने पर अपने आप ही उद्भिन्न हो गया- परिपक्व होकर फट गया। (मऊरी पोयए एत्थ. जाए) फूटते ही उस में से एक मयरी पोतक निकला-(तरणं से जिणदत्तपुत्त तं मऊरीपोययं पासित्ता हट्टतुट्टे मयूरपोयए सदावेइ) जिनदत्तने मयूपोत को देखा तो देखकर वह बहुत अधिक हर्षित एवं तुष्ट हुआ-बाद में उसने मयूरपोतको को बुलाया (महावित्ता एवं वयामी) बुलाकर उनसे सा कहा-(तुम्भेणं देवाणुप्पिया! इमं मउरीपोययं बहू हि ऊर पोसणपाउग्गेहिं दव्वेहिं अणुपुब्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संव)हे देवानुमियो' तुमलोग इस मयूर शिशुको अनेक मयूर पोषक प्रायोग्य द्रव्यों से क्रमशः रक्षाकरते हुए उन्भिन्ने) या प्रमाणे ते ढसनु पावार नाय ५२ परिवर्तित या १२२ પિતાની જગ્યાથી સહેજ પણ ખસેડ્યા વગર અને “ટિ ટિ આ જાતના શબ્દ કરાવ્યા વગર જ યોગ્ય સમયે પિતાની જાતે જ ઉભિન્ન થઈ ગયું એટલે કે પાકીને ફૂટી आयु. मऊरी पोयए एत्थ जाए) भने तेभाती मे सनु यु नीज्यु. (तएणं से जिनदत्तपुत्ते तं मयूरपोययं पासइ पासित्ता हतुढे मयूरपोयए सदाइ) निहत्त दाना भयाने नन ५५ पित पाभ्यो भने तुष्ट थये। त्या२ पछी तेथे भारने पाणना। भाणुसाने मालाच्या ( सहावित्ता एवंवयासी) मादावीन घु---(तुब्भेणं देवाणुप्पिया ! इमं मऊरीपोययं वहहिं मऊरी पोसणपाउग्गेहिं दव्वेहि अणुपुग्वेण सारक्खमाणा संगोवेमाणा संबडेह) હે દેવાનું પ્રિયે! તમે આ હેલના બચ્ચાની અનેક મોરના પિષણ માટે થાય એવા દ્રવ્યથી રક્ષા કરે તેમજ બિલાડા વગેરેના ઉપદ્રવથી પણ બચાવતા રહી તેનું પિષણ કરે અને For Private and Personal Use Only

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