Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 738
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२६ - ज्ञाताधर्मकथाङ्गम परिवसतः किं भूतो शृगालो 'पावा' पापौ-पापात्मानौ, 'चंडा' चण्डो-पबल. कोपयुक्तो, 'रोदा' रौद्रौ भयंकरौ, 'तल्लिच्छा तल्लिप्सौ-अत्र तच्छन्देन मांसस्य परामर्शः चण्डरौद्रविशेषणोपादानात् मांसेच्छासमन्वितो, साहसिको बलाकारिणौ दृष्टो, 'लोहियपाणी लोहितपाणी रत्ताकरौ अत्र पाणिशब्दोऽग्रिमचरणद्वयं मुखं च बोधयति. शगालादीनां चरणमुखस्यैव करकार्यकारिस्वात् अजमेषवालादिशोणितसंसक्त मुखचरणावित्यर्थः, आमिषार्थिनौ मांसाधभिलाषिणो, आमिषाऽऽहारौ मांसादिभक्षको, आमिषपियो आमिपलोलोमांसजिघृक्षया चपलो, आमिपं गवेषयमाणो अन्वेषयन्तौ रात्रौ विकाल चारिणी विकाला सूर्यास्तमनकालः, तत्र चरितुं शीलं ययोस्तौ तथा, सायं रात्रौ च मांसेच्छया भ्रमणशीलावित्यो । 'दिया पच्छन्नं चावि चिटुंति' 'चावि' अपि च दिवा-दिवसे प्रच्छन्नौ -गुप्तौ जनैरलक्षितौ भूत्वा तिष्ठतः ।।म. ३॥ सियालगा परिवसंति) वहां दो पाप कर्म में परायण शृगाल रहते थे। ये दोनों (पाग चंडा, रोद्दा, तलिच्छा, साहसिया, लोहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गवेसमाणा रतिं वियालचारिणो दिया पच्छन्नं चावि चिट्ठति) श्रृंगाल पापात्मा थे, चंड थे, प्रबल कोप से युक्त थे, रौद्र थे,--भयंकर थे, मांस की इच्छा से समवित थे, बलात्कारी थे--दृष्ट-थे-इनके आगे के दोनों चरण और मुख सदा रक्त से आई बने रहते थे। मांसादि के ये सदा अभिलाषी थे, आमिष (मांस) ही इन्हें अधिक प्रिय था--मांस के जिघृक्षु होने से ये चपल बने रहते थे। इसलिये रात और दिन ये मांस की इच्छा से इधर उधर फिरा करते थे। कभी २ दिन में छुपकर भी बैठ जाते थे। मृ. ३। (तत्थण दुवे पावसियालगा परिवसंति) त्यां पा५४म भी प्रवृत्त मनेा मे शिया २उता उता. मायने (पावा, चंडा, रोदा, तल्लिच्छा. साहसिया, लोहियपाणी, आमिसत्थी आमिसाहोरो अमिसप्पिया, 'आमिसलोला' आमिस गवेममाणा रत्ति वियालचारिणो दिया पच्छन्ने चावि चिट्ठति) पापी ता, य (मय ४२) हुता, 3 अधी तो शैद्रता , सय४२ ता, માંસના ઈચ્છુક હતા, બળજેરી કરનારા હતા, દુષ્ટ હતા, તેમના આગળના બંને પગ તેમજ મેં હંમેશા લેહીથી ખરડાએલાં રહેતાં હતાં. માંસ વગેરેના તેઓ અભિલાષી હતા, આમિષ (માંસ) જ તેમને આહાર (ખોરાક) હતે. માંસ જ તેમને વધારે પડતું ગમતું હતું. માંસના જિઘન્ન હોવાથી તેઓ બંને હંમેશા ચપળ રહેતા હતા રાત અને દિવસ તેઓ માંસની શોધમાં રોમેર વિચરતા રહેતા હતા. કે ઈક વખત દિવસમાં પણ શિકારની શોધમાં છુપાઈને બેસી જતા હતા. મેં સૂત્ર ૩ છે For Private and Personal Use Only

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