Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शाताधर्म कथासूत्र यावद् दन्तैरास्फोटयतः, अयं भावार्थ:-उद्वर्तनानन्तरं तौ श्रृगालौ परिवर्तनमनागपसारण-पुनः पुनः स्थानान्तरप्रापग-चालन घटनेषचालन-क्षोभणरूपविविधव्यापारैः संचाल्य नखैराच्छिद्य दन्तैः खण्डशः कुरुत इति।'जाव करेत्तए' यावत् कर्तुम्, यद्यपि तौ श्रृगालौ नखदन्ताघातैः कूर्मकं पीडयितुं प्रवृत्ती तथापि न शक्नुतस्तस्य कूर्मकस्य कामपि बाधां चर्मच्छेदं वा कर्तुमित्यर्थः
'तएण ते पावसियालगा' इत्यादि ।
टीकार्थ--(तएण) इसके बाद (ते पावसियालगा) वे दोनों पापी शृगोल (जेणेव से दोच्चए कुम्मए तेणेव उवागच्छति) जहां वह द्वितीय कच्छप था वहाँ गये (उवागच्छित्ता तं कुम्मए सबआ समंता उन्मत्ते ति, जाव दंतेहिं अक्खौति, जाव करेत्तए) वहां जाकर उन्होंने उस कच्छप को सब प्रकार से भऔर सब तरफ से उल्टा सीधा किया--यावत् दांतों से उसे चौथा (काटा) भी परन्तु वे उसके शरीर में किसी भी प्रकार की बाधा करने में और उसके चर्म को छेदन करने में समर्थ नहीं हो सके मतलब इसका इस प्रकार है-जब उन दोनो पापी-गालोंने उस कच्छप को पत्य-नीचे के प्रदेश को ऊंचा किया-तो वे इतना ही न्यापार कर विरत नहीं हुए-किन्तु उद्वर्तन के बाद उन्होंने उसे परिव तित भी किया--मनाग अपसारित भी किया--चार बार उसे एक स्थान से दूसरा स्थान पर भी रखा, उसे कंपाया भी, अपने दोनों आगे के पैरों से घहित भी किया, कुछ आगे और भी उसे सरकाया -वहां भयजनक चेष्टाएँ भी की-नखों द्वारा उसे छेदित भी किया
'तएण' ते पावसियामगा' इत्यादि ।
टीकार्थ--(तएणं) त्वर माह (ते पावसियालगा) मने पापी श्री (जेणेव से दोच्चए कुम्मए तेणेव उवागच्छति) arni मान्ने यो त त्यां गया. (उवागच्छित्ता तं कुम्मगं सव्वओ समता उवत्तेति जान दंतेहिं अक्खोडेंति, जाव करेत्तए) त्यां न तमामे त माने गधी शते या બાજુથી ઉલ્ટે સીધ કર્યો, અને દાંતથી તેને કાપવાને પ્રયત્ન કર્યો પણ તેઓ કે પણ રીતે તેના શરીરને પીડા પહોંચાડવામાં અને તેની ચામડીને ફાડવામાં સમર્થ થઈ શક્યા નહિ. એટલે કે જયારે બંને પાપી મૃગાલેએ તે કાચબાને ઊંધ કર્યો– નીચેના ભાગને ઉપર કર્યો–આટલું કરીને જ તેઓ વિરમ્યા હોય તેમ નહિ પણ ઉબર્તન પછી શગાલોએ તેને પરિવર્તિત કર્યો, શેડો આગળ ખસેડે વારંવાર તેને એક સ્થાનેથી બીજા સ્થાને લઈ ગયા, તેને હલા, બંને આગળના પગથી તેને ઘટિત ૫ણક, ઘેડે તેને આગળ ખસેડયે ત્યાં ભયજનક ચેષ્ટાઓ કરે, નખ વડે
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