Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 729
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् ७१७ कयाए समाणीए' चप्पुटिकाए-कृतायां सत्यां 'णंगोलाभंगसिरोधरे' लागुल भङ्गशिरोधरः सिंहादिपुच्छचक्रीकरणसदृशः शिरोधरो ग्रीवा यस्य तथा, 'से यावंगे' स्वेतापाङ्ग: श्वेतनेत्रान्तभागः यद्वा 'सेयावष्णे' स्वेदापन्नः जात. स्वेदः 'अवयारियपइन्नपक्खे' अवतारितप्रकीर्णपक्षः तत्र-अवतारितोशरीराद् दूरीकृतौ प्रकीणों प्रसारितौ पक्षौ यस्य स तथा 'उक्वित्तचंदकाइय र.लावे' उक्षिप्तचन्द्रकादिककलाप:-तत्र, उत्क्षिप्त = उर्वीकृतः चन्द्रकादिकः= मयूराङ्गविशेषोपेतश्चन्द्रकै रचितः कलापः शिखण्डो येन स तथा 'केकाईय. सयाणि' केकायितशतानि मयरशब्दशतानि विमुञ्चन् सन् नृत्यति। ततस्त. दनन्तर खलु स स जिनदत्तापुत्रस्तेन मयूरपोत केन चम्पायां नगर्या मध्ये शृङ्गाट कत्रिकचतुष्कचत्वरमहापथेषु 'सइएहिय' शलकैः---शतसंख्यद्रव्यैः 'माहस्मिएहिय' साहसिकैश्च सहस्र संख्यकैःद्रव्यैः 'सयसाहस्सिएहिय' शतसाहसिकश्च दत्तपुत्तेणं) जिनदत्तपुत्र द्वारो (एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए) एक ही चुटकी बजाई जाने पर (गंगोलाभंगसिरोधरे सेयावेगे :अवयारियपइन्न-- पक्खे उक्खित्तचंदकाइयकलावे केकाइय सयाणि मुच्चमाणे पच्चइ) अपनी ग्रीवा को सिंहादिकों के पूछके समान वक्र कर लेता था। दोनों नेत्र प्रान्त भाग श्वेत हो जाते थे अथवा इसका समस्त शरीर खेद से व्याप्त हो जाता था। इसके द्वारा फैलाये गये पांख इसके शरीर से भिन्न २ हो जाते थे। मयूरांग विशेष से उपेत चन्द्रक रचित कलाशिखण्ड इसका उँचा हो जाता था। और सैकड़ों केकारवों को छोडता हुआ यह नाचने लग जाता था। (तएणं से जिणदत्तपुचे तेणं मऊरपोयएणं चपाए नयरीए सिंघाड़ग जाव एहेमु सहएहिं साहस्सिएहिं य सयसाहस्सिएहिं य पणिएहिय जयं करेमाणे विहरइ) इसके बाद वह जिनदत्त पुत्र उस मयूरपोतकके साथ चपानगरी के (ण गोला भंगासिरोघरे सेयावेगे आयारियपइन्नपक्खे उक्वित्त चंदकाइयकलावे केककाइय सयाणि विमुञ्चमागे णेच्चइ) पै.तानी ने सिड વગેરેની પૂછડીની જેમ વાંકી કરતું હતું, તેની બંને આંખોના ખૂણાઓ ધળા થઈ જતાં હતા, અને તેનું આખું શરીર ખેદ યુક્ત થઈ જતું હતું. તે જ્યારે પીંછાઓને ફેલાવતું ત્યારે પીંછાઓ તેના શરીરથી જુદાં થઈ જતાં હતા. તેની ચન્દ્રવાળી કલગી ઊંચે (ઉન્નત) થઈ જતી હતી, અને સેંકડો વાર ટહૂકતું તે નાચવા માંડતું तु', (तएण से जिणदनपुतो ते ण मऊरपोयएण चंपाए मयरीए सिंघाडग जाव पहेसु सइएहिं य साहस्सिएहिं य सयसाहस्सिएहिं य पणिएहिं य जयं करेमाणे विहरइ) त्या२ मा किन पुत्र ते भा२ना यानी साथे For Private and Personal Use Only

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