Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 717
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवाणीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् 'नाव जलं' याजमा चलति म्येभ्युद्गते मति 'जेणेव' यत्रैव 'से' तद् बनमयूर्या अण्डकं रक्षितमस्ति तेणेव' तत्रैवोपागच्छति, उगगत्य च 'तंमि' तस्मिन् वनमयूर्या अंडके 'संकिए' शंकित:-अण्डकविषये शङ्कावान-इदमण्डक पक्कावस्थां प्राप्यति नवा इति 'कविए' कातिः-फलाऽऽकाशायुक्तः-अम्मादण्डकात् कदा मयूरशावकः समुत्पत्स्यते इति, 'विनिगिच्छासमावन्ने' विचि. कित्सा समापन्नः-फलं प्रति संदेहयुक्तः इतः समुद्भतेऽपि मारशावके तेन मम क्रीडारूपं फलं किनुभविष्यति न वा इत्येवं फलं प्रति संशयापन्नः, 'भेय ममावन्ने' भेदसमापन्नः. मनेद्वैधीभावं प्राप्तः, अम्मादण्ड काजातो मगूरपोतो शित होने पर जहां उम वन मयूरी का अंडक रखा था वहाँ गया (उबागच्छित्ता तंम मऊी अंडयंमि संकिने वितिगिन्छिाममावन्ने भेयसमावन्ने कलुपममान्ने पिन्नं ममं एत्थ किलावणमऊरी पोयए भीस्सइ उदाहु णो भविम्सइ तिकटु) वहां जाकर वह उस मयूरी के अंडे के विषय में शंकित हो गया-- यह अंडा पक्यावस्था को प्राप्त होगा या नहीं इस प्रकार का उसे संदेह हुआ--कांक्षिन हो गया--इस अंडे से कब मयूरी शावक उत्पन्न होगा इस प्रकार के फलके विषय में यह आकांक्षा युक्त बन गया-विचिकित्सा समापन्न हो गया-इससे मयूर पोतक होने पर भी उस से मुझे क्रीडा रूप फल प्राप्त होगा कि नहीं होगा-इस प्रकार वह फल में संशयापन्न हो गया-भेद समापन्न हो गया-इस अंडे से उत्पन्न हुआ मयूरी पोतकजीवित रहेगा या नहीं रहेगा इस प्रकार से उसकी सत्ताके विषय में संकल्प विकल्प बाला बन कर बह मति की विविधता से युक्त हो गया, कलुष समापन्न हो गया सानु छ' भूक्षु तु त्यां यो. (उवागच्छिना तंसि मऊरीअंडयासि संकिते कंखिते वितिगिच्छासमावन्ने भेयसमावन्ने कलुससमावन्ने किन्नं एस्थ किलावणमऊरी पोयए भविस्सइ उदाहु णो भविस्सइत्तिक) सधने त्यो सन। ઈડા માટે તેને શંકાયુક્ત વિચારે થવા માંડ્યા. કે આ ઈડુ પરિપકવ થશે કે નહિ? આ ઈડ માંથી ક્યારે મેરનું બચ્ચું જન્મશે, આ રીતે તેના પરિણામની તેને જિજ્ઞાસા ઉત્પન્ન થઈ. આકાંક્ષા યુકત બની ગયું અને વિચિકિત્સા યુકત બની ગયે. આમાંથી મેરનું બચ્ચું જન્મશે તે પણ તે બચું અમારું મનોરંજન કરશે કે નહિં? આ રીતે પરિણામમાં તેને સંશય ઉત્પન્ન થયો, ભેદ સમાપન્ન થઈ ગયે. ઈંડામાંથી ઢેલનું બચુ જીવતું રહેશે કે નહિ? આ રીતે તેની સત્તાના વિષે સંકલ્પ વિકલ્પ કરતે તે મુંઝવણમાં પડી ગયે, કલુષ યુક્ત થઈ ગયે, તેની મતિ મલીન થઈ ગઈ. એ જ વાતને For Private and Personal Use Only

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