Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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७.३
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् गणिकायै विपुलं जीविकाई जीविकायोग्यं प्रीतिदानं दत्तः दत्या सत्कुरुतः वस्त्रादिना सत्कारं कुरुतः सम्मानयतः बचनादिना संमानं कुरुतः सत्कृत्य संमान्य देवदत्ताया गृहास्पतिनिष्क्रमतः निस्सरतः, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव स्वकानि स्वकानि गृहाणि तत्रैवोपागच्छतः उपागत्य 'सकम्मसंपउना' स्वकर्मसंप्रयुक्ती जातौ चाप्यास्ताम्-स्वस्व व्यापारादिकार्य करणे सावधानी जातावित्यर्थः ॥म. १३॥
मूलम्-तत्थणं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए सेणं कलं जाव जलंते जेणेव से वणमऊरीअंडए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तंसि मऊरी अंडयंसि संकिते कंखिते वितिगिच्छासमावन्ने भेय समावन्ने कलुससमावन्ने किन्नं ममं एत्थ किलावणमऊरी पोयए (उवागच्छित्ता देवदत्ताए गिहं अणुपविसंति) आकर वे देवदत्ता के घर के भीतर--(अणुपविसिगा देवदत्ताए गणियाए विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति) भीतर जाकर उन दोनोंने देवदत्ता गणिका के लिये विपुल मात्रा में जीविका के योग्य प्रीतिदान दिया। (दलयित्ता सक्कारेंति, सक्कारिता सम्माणति, सम्माणित्ता देवदत्ताए गिहाओ पडि निक्खमंति) देकर फिर उस का वस्त्रादि द्वारा सत्कार किया, सत्कार कर के मीठे २ वचनों द्वारा उसका सन्मान किया--सन्मान कर बाद में वे उस देवदत्ता के घर से बाहर निकले (पडिनिक्ख मित्ता जेणेव सयाई २ गिहाइ तेणेव उवागच्छंति-उवागच्छिता सकम्मसंपत्ता जाया यावि होत्था) निकलकर अपने अपने घर पहुँचे-और जाकर अपने २ व्यापार
आदि कार्य करने में लग गये ।। मृ. १३ ॥ गिहं अणुपविसंति) घरमा प्रवेशान ते मनये हेपत्ता पाने सविध भाटे Yuzon प्रभाgi Gथित श्रीतिहान भा'. (दलयिचा सकारेति, सक्कारित्ता, सम्माणति, सम्माणिचा देवदत्ताए गिहाओ पडि निक्खमंति) प्रीतिहान अपान તે ગણિકાને વસ્ત્રો વગેરે આપીને તેને સત્કાર કર્યો, સત્કાર કરીને મધુરવાણી વડે તેનું સન્માન કર્યું અને સન્માન કરીને તેઓ દેવદત્તા ગણિકાના ઘેરથી બહાર નીકળ્યા (पडिनिक्खमित्ता जेणेव सयाई २ गिहाई तेणेव उबागच्छंति-उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ता जायायाविहोत्था) नाजीने तेसो पातपाताने ३२ पहा-या अने પહોંચીને પિતાના વેપાર વગેરે કામમાં પરવાઈ ગયા. સૂ. ૧૩
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