Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 718
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शोताधर्मकथाजसत्र जीविष्यति नवेत्येवं तदीयसत्ताविषये संकल्पविकल्पवान्, 'कलुससमावन्ने' कलुषसमापन्नः मतेर्मालिन्यमुपगतः अंशतः पूर्वोक्तार्थमेवाह-'किन्न' किं खलु अत्र किमिति वितर्के ममास्मिन् वनमा अण्डके क्रीडनार्थ मयूरीपोतको भविष्यति ? 'उदाहु' उताहो-अथवा न भविष्यति, इति कृत्वा 'तं मऊरी अंडयं' तन्मयूर्या अण्डकम् 'अभिक्खणं२, अभीक्ष्णम् पुनः पुनः 'उव्वत्तेइ' उर्तयति-अधः प्रदेशमुपरिकरोति' परियत्तेई' परिवर्तयति-पूर्व यथास्थित तथैव पुनः करोति- आसारेइ' आसारयति यस्मिन् स्थाने स्थितमासीत् ततो मनागपसारयति 'संसारेइ संसायति पुनः पुनः स्थानान्तरं प्रापयति 'चालेइ' चालयति कम्पयति ‘फंदेइ' स्पन्दयति-किंचिञ्चलितं करोति 'घटेइ' घट्टयति हस्तेन पुनः पुनः स्पृशति 'खोभेइ' क्षोभयति भूम्यां स्वल्पतरं गतं कृत्वा तत्र प्रवेशयति. अभीक्ष्णमभीक्ष्णं 'कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ' कर्णम्ले टिट्टिया मति की मलिनता से वह व्याप्त हो गया। इसी बात को अंशतः मुत्रकार "किन्न" इत्यादि पदों द्वारा स्पष्ट करते हैं-क्या मुझे क्रीडा के लिये इस वन मयुरीके अंडे में से क्रीडापोतक प्राप्त होगा अथवा नहीं होगा-इस प्रकार विचार कर (तं मरीअंडयं अभिक्खण २ उन्मत्तइ, परियत्तेइ, आसारेइ, संसारेइ, चालेइ, फंदेइ, घटेइ, खोभेह, अभिक्खण २ कन्नमूलंसि टिटियावेइ) उसने उस मयूरी के अंडे को बार २ नीचे से ऊंचा किया अर्थात नीचे के प्रदेश को कार किया परिवर्तित किया-जैसा रक्खा था पुनः वैसा ही रख दिया, बाद में जिस स्थान पर वह रखा था उस स्थान से कुछ आगे सरका दिया बाद उसे और दूसरे स्थान पर रखने लगा उसे चलाया-कपित किया, कुछ २ चलाया, हाय से उसे पुनः धर्षित किया जमीन में थोडा सा गतेकर (खाकर) उसे उसमें रख दिया । સૂત્રકાર નિ વગેરે પદવડે સ્પષ્ટ કરે છે–શું મને કીડા માટે આ વનની હેલના ४'मांथा ही पात४ (५२-यु) भगशे नडिया शत वियाशन ( मशीअ डयं अभिक्खणं २ उन्मत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ, संसारेइ, चालेइ फंदेइ, घ, खोभेइ, अभिक्खणं २ कन्नमलसि टिट्टियावेह) सार्थवाड पुत्रे देखना ઈંડાને વારંવાર ઉપર નીચે કર્યું, એટલે કે ઈડાના નીચેના ભાગને ઉપર કર્યો, અને ત્યાર પછી ઈડાને પહેલાંની જેમ જ મૂકી દીધું. ત્યાર બાદ તેણે ઈડું જ્યાં મૂકેલું હતું ત્યાંથી થોડું આગળ ખસેડી દીધું, આ પ્રમાણે ઈડાને તે વારંવાર એકરથાનેથી બીજા સ્થાને ખસેડવા લાગે, ચલિત અને કંપિત કરવા લાગે, ખસેડીને હાથ વડે ઈડાને સ્પર્શવા લાગ્યા, જમીનમાં નાનું સરખે ખાડે કરીને તેમાં ઈ ડાને મૂકી For Private and Personal Use Only

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