Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 708
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६९६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधम कथाङ्गम्रो स्थितैर्बहिःस्था दृश्यन्ते तादृशेषु च 'कुसुमघरएसु' कुसुमगृह केषु = पुष्पगृह के पु, इत्यादिषु, स्थानेषु 'उज्जाणसिरिं' उद्यानश्रियं, उपवनस्य शोभां सुखं च 'पञ्चणु भवमाणा' प्रत्यनुभवन्तौ देवदत्तया सार्द्धमनुभवन्तौ विहरतः = विचरतः । १०। मूलम् -- तए णं ते सत्थवाह दारया जेणेव से मालुया कच्छए तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तरणं सा वणमऊरी ते सत्थहदारए एजमाणे पास्इ पासित्ता भीया तत्था तसिया उब्विग्गा पलाया महया महया सहणं केकारखं विणिम्मुयमाणी २ मालुयाकच्छाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता एगसि रुक्खडालयंसि ठिच्चा ते सत्थ वाहदारए मालुयाकच्छयं च अणिमिसाए दिट्टिए पेहमाणी २ चिइ ॥ सू० ११ ॥ टीका- 'तपणं ते' इत्यादि - - ततस्तदनन्तरं खलु तदुधानशोभासुखानुभवानन्तरं तौ सार्थवाहदारकौ य व स मालुकाकक्षकः पूर्वोक्त एकास्थिकफलानां वृक्षविशेषाणां काननं वर्तते तत्रैत्र 'पहारेत्थ गमणाए' प्राधार यतां मनुष्य बाहिर रहे हुए मनुष्यों की दृष्टि में न आवे किन्तु बाहिर मनुष्य उन भीतर में रहे हुए मनुष्यों को दिखलाई पडते रहे ऐसे घरों में- (कुसुमघर एसु य) पुष्ष गृहों (उज्जाणसिरिं पचणुभवमाणा विहरंति ) देवदत्ता के साथ २ उद्यानश्री का निरीक्षण करता हुआ आनंद भोग करते हुए बिचरते रहे। सूत्र १० ॥ 'तरणं ते सत्थवाहदारगा' इत्यादि । टीकार्थ - - (तणं) इसके बाद ( ते सत्थवाहदारगा) वे दोनों सार्थवाह दारक (जेणेव मालुयाकच्छ) जहां वह मालुका कच्छ था ( तेणेव पहारेत्थ गमगाए) उस ओर जानेके लिये उत्कंठित हुए (नएणं सा वणमऊरी ते એવા ઘરમાં કે જેમની અંદર બેઠેલા માણસેાને સારી પેઠે જોઇ શકે પણ બહારના भाणुसो अहरना भाणुसोने लेन शडे, (कुसुमघर एस य) युष्प गृहोभां (उज्जासिरिं पचणुभवमाणा विहरति ) उद्याननी शोला लेता हेवदत्तानी साथै सुख અનુભવતા વિચરતા રહ્યા. ાસુત્ર ૧૦ના 'तणं ते सत्थवाह - दारगा' इत्यादि ! टीअर्थ - (त एणं) त्यारमाह (ते सत्थवाह दारगा) ने सार्थवाह पुत्र (जेणेव - से मालुया कच्छए) ने त२३ भादु छतो. (तेणेव पहारेत्थ गमगाए) For Private and Personal Use Only

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