Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 706
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૬૪ शोताधर्मकथाङ्गसत्रे स्वच्छौ, अत एव परमशुचिभूतों सुखासनं प्राप्योपविष्टौ इत्यर्थः । 'समाणा' सन्तौ देवदत्तया गणिकया साद्ध विपुलान्-वीस्तीर्णान मानुष्यकान् मनुष्यसंबंधिनः काम भोगान् शब्दादीन् पञ्चेन्द्रियविषयान् भुञ्जानौ विहरत आसातेस्मा सू ९' मूलम् - तणं ते सत्थवाहदारगा पुव्वावरण्हकालसमयं सि देवदत्ता गणियाए सद्धि थणामंडवाओ पडिनिक्ख मंति पडिनिक्वमित्त हत्थ संगेलीए सुभूमिभागे उज्जाणे बहुसु आलिघरएसु य कयलीघरेसु य लयाघरएसु य अच्छणघरएसु य पेच्छणघरएस य पसाणघर एसुय मोहणघरएसु य सालघर सुय जालघरएसु य कुसुमघर सु य उज्जाणसिरिं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ सू. १०॥ टीका - ततस्तदनन्तरं खलु तौ सार्थवाहदारकौ पूर्वापराहूकालसमयेपश्चिमे महरे देवदत्तया गणिकया सार्द्ध स्थणामण्डपात् प्रतिनिष्क्रामतः बहि'भोजन करने के बाद उन्होंने आचमन शुद्ध जल से कुल्ला किया। खाते समय जो अन्नादि के सीत उनके पैर आदि अवयवों पर गिर गये थे उन्हें उन्हों दूर कर उन अवयवों को साफ किया। इस तरह परमशुचि भूत होकर सुखासन पर आकर बैठ गये' बैठने के बाद उन्होंने उस देवदत्ता गणिका के साथ विपुल मनुष्यभव संबन्धी कामभोगों को शब्दादिक पांचो इन्द्रियों के विषयों को सेवन किया । || सूत्र ९॥ 'तरणं. ते सत्यवाहदारगा' इत्यादि । टीकार्थ-- (तएण ) इसके बाद (ते सत्यवाहदारगा) वे सार्थवाह दारक (पुञ्वावरण्ड - काल समर्थसि ) पश्चिम महर में (देवदत्ताए गणियोए सद्धिं) देवदत्ता જમ્યા પછી તેઓએ શુદ્ધ પાણીથી કોગળા કર્યાં. જમતી વખતે અન્ન વગેરેના કણા તેમના હાથ પગ ઉપર પડી ગયા હતા તેમને તેઓએ સાફ કર્યા. અને આ પ્રમાણે પેાતાના અવયવાને સ્વચ્છ બનાવ્યા. શુદ્ધ થયા. ખાદ તેઓ સરસ સુખદ આસન પર આવીને ખેઠા. ખેસીને તેઓએ ગણિકા દેવદત્તાની સાથે પુષ્કળ મનુષ્યભવના કામભોગા તેમજ શબ્દ વગેરે પાંચે ઇન્દ્રિયોના વિષયાનુ સેવન કર્યું. ાસૂત્ર. તા 'त एण ते सत्थवाहदारगा' इत्यादि ! टीअर्थ - (तपणं) त्यारमाह (ते सत्थवाहदारगा) सार्थवाहना पुत्रो (पुन्त्रावर - ह्णकालसमयंसि) चाछला चहारना वणते (देवदचाए गणियाए सर्द्धि) देवहत्ता गुशिअनी साथै ( थूणामंडत्राओ पडिनिक्खमंति) स्थूला भडचनी महार नीउज्या For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762