Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 705
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् ३९३ भरणशोभितो, 'असत्था' आस्वस्थौ परिश्रमापनयनेन स्वस्थीभूतौ, प्रसन्नचित्तौ इत्यर्थः 'वीसत्था विस्वस्थौ विशेषेण स्वस्थीभूतौ सर्वथाऽपगतश्रमी, सुखासनवरगवौ सुखप्रदपर्यायासनोपविष्टौ, देवदत्तया सार्द्ध तं विपुलं विस्तीर्णम् अशनं पानं खाद्यं. स्वाद्य धूपं पुष्पं गन्धं वस्त्रं च, 'असाएमाणा' आस्वादयन्तो-ईषत्स्वादयन्तौ 'विसाएमाणा' विस्वादयन्तौ-विशेषेण वारं वारमास्वादयन्तौ, 'परिभुजेमाणा' परिभुजानौ-परिभोगं कुर्वाणौ एवं च अनेन प्रकारेण खलु विहरतः आसाते। अपि च ग्वलु 'निमिय भुत्तु त्तरागया' निमित भुक्तोतरागतौ निमितंवादितं, भुक्तम् आस्वादितं ताभ्यामुत्तरं अनन्तरम् आगतौ सुरवासनं पर्यङ्कादिकं प्राप्तौ, जिमितमुक्तानन्तरम्-आचान्तौ शुद्धोदकेन कृताचमनौ, लेपाद्यपनयनेन चोक्षो आकर वे उसमें प्रविष्ट हुए (अणुपविसित्ता सव्वालंकारविभूसिया आसस्था वीसत्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धि) प्रविष्ट होकर सर्व अलंकारो से विभूषित बने हुए वे आश्वस्त-परिश्रम के अपनयन से स्वस्थचिन हुए विश्वस्त हुए-सर्वथा परिश्रम से रहित हुए और सुखप्रदपर्यङ्क (पलंग) आदि आसन पर जाकर बैठ गये। बाद में उन्होंने उस देवदत्ता के साथ (तं विउल' असणं ४ धूवपुप्फगंधवत्थं आमाएमाणा, वोसाएमाणा परिभुंजे माणा एवं च णं विहरंति) उस विपुलमात्रामें निष्पन्न हुए अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य,रूप चारों प्रकार के आहार को किया रुच२ कर उसका स्वाद लियाधूप, पुष्प, गंध, वस्त्र का वितरण किण-(जिमियभुत्तु त्तरागया वि य णं समाणा देवदत्ताए सद्धिं विउलाइमाणुग्सगाई कामभोगाइ भुंजमामा विहरंति) जब वे अच्छी तरह खा पी चुके-तब देवदत्ता के साथ वे पर्यङ्क आदि आमन पर आकर बैठ गये वहां इतना संबन्ध और इस प्रकार जोड लेना चाहिये(अणुपविसित्ता सव्वालंकारविभूसिया आसत्था वीसत्था सुहासमवरगया देवदत्ताए सद्धिं) प्रवेशीने सर्व मारोथी विभूषित थयेमा तेसो माश्वस्त-था कार સ્વસ્થ ચિત્ત બન્યા. વિશ્વસ્ત થયા–સર્વથા શ્રમ રહિત થયા, અને સુખેથી બેસાય તેવા પલ ગ (પર્યક) વગેરે આસન પર બેસી ગયા. ત્યારબાદ તેમણે દેવદત્તા ગુણિકાની સાથે (तविउल असण धूपपुप्फगंधवत्थं आसाएमाणा, वीसाएमाणा परिभुजेमाणा एवं च णं विहरांति) ४ प्रभामा तयार ४२शवीने त्यां पडयाડવામાં આવેલા અાન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદ્ય રૂપ ચાર જાતના આહારને યથારુચિ भ्या. तभ धूप,-पु.५, ५ भने वस्त्रोन वितरयु (निमिय भुत्तुत्तरागया वि यणं समाणा देवदत्ताए सद्धि विउलाई माणुस्सगाई कामभोगाइ भुजमाणा विहरति) अन्य पछी तम्मा ५ वगेरे सरस मासन। ५२ मावीन वहत्ता ગણિકાની સાથે બેસી ગયા. અહીં આટલી વિગત વધારાની જાણી લેવી જોઈએ કે For Private and Personal Use Only

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