Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 709
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३ जिनदत्त-प्सागरदत्तचरित्रम् गमनाय-तत्र गन्तुमुत्कण्ठितौ गतौ च, ततस्तदनन्तरं खलु सा वनमयूरी तो सार्थवाहदारको 'एजमाणे' एजमानी प्रत्यागच्छन्तौ पश्यति दृष्ट्वा च' 'भीया' भीताः अकस्माद् भयाननकवस्तुदर्शनेन भयं प्रोप्ता 'तत्था' अम्ताभयजनितदःखं प्राप्ता स्तब्धा वा क्षणमात्र भयेन निश्चला जाता 'तसिया' अन्तर्भावितण्यर्थः, त्रासिता आत्मनः प्रतिपदेशं भयेन संक्रान्ता जाता 'उधिग्गा' उद्विग्ना-त्रोणशरणरहितत्वेनोद्वेगं प्राप्ता 'पलाया' पलायिता- उड्डयनोयुक्ता 'महया २ सदेणं' महता २ शब्देन उच्चस्वरेण 'केकारवं' मयूरशब्दं 'विणिम्मुयमाणो २' विनिमुञ्चन्ती-पुन:पुनः कुर्वती मालुकाक्षात् 'पडिनिकबमह' प्रतिनिष्कामति-निस्सरति 'पडिनिक्खत्ता' प्रतिनिष्क्रम्य निस्सृत्य स्वस्थानादुड्डीय 'एगंसि' एकस्यां वृक्षशाखायां 'ठिच्चा' स्थित्वा तो सार्थवाहदारको त सत्यवाहदारए एबमारे पासइ) उस वनमयूरीने उन दोनों सार्थवाह दारकों का ज्यों ही आते हुए देवा-तो (पासित्ता) देवकर (भीया तत्या तमिया उजिग्गा पलाया) भय भीत हो गई त्रस्त हो गई--अकस्मात् भयजनक वस्तु को देखने से भय जनित दुःखको प्राप्त हुई-अथवा क्षण मात्र के लिये भयसे निश्चल हो गई-आत्मा के प्रतिपदेश में भय से युक्त हो गई, उद्वेग को प्राप्त हो गई और उस स्थान से उडी (महयार सद्देणं केकारव विणिम्मुयमागी२ मालुशााच्छाओ पडिनिक्खमइ) उडतीर बडे जोर २ से के कारव (शब्द) वारवार करती करती वह उस मालुका कच्छा से बाहर हो गई (पडिनि खिभिता एगसि क्खडालयंसि ठिबा ते सत्यवाहदारए मालुया. कच्छयं च गिमिगए दिद्विए पेहमाणी २ चिह) बाहर होकर एक ते मानgaval 2011 च्या (तएणं सा वणमऊरी ते सत्यवाहदारए एजमाणे पास:) ते मने साथ वाडाने नया मने (पासित्ता)धने (भीया तत्था तसिया उधिन्गा पलाया) 300, संत्रस्त 25 माथित सय ५माउनारी वस्तुन ते દુઃખ પામી, અથવા તો તે ભયભીત થઈને છેડા વખત માટે સ્તબ્ધ થઈ ગઈ, તેના આત્મપ્રદેશોમાં ભય પ્રસરી ગયે. તે ઉદ્વિગ્ન થઈ ગઈ તેની સામે રક્ષાને કઈ પણ જાતને ઉપાય હતે નહિ તેથી તે વ્યાકુળ બની ગઈ અને તે સ્થાનેથી ઉડી (महया २ महगें केकार विणिम्मुयमाणी २ मालुया कच्छाओ पडिनिस्वमइ) अने भोट। स्वरथी डूती २ ती ते मा ४२७थी डा२ नीजी ४. (पडिनिपखमित्ता एगांसि रुक्खडलयंसि ठिचा ते मत्थवाहदारए मालुया कच्छयं च अणिमिसाए दिटिए पेहमाणी२ चिट्टइ) मासु ४२छनी १९४२ ना४जीन ते For Private and Personal Use Only

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