Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 678
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्म कथा मल्लालंकारविभूसे' व्यपगतस्नानोन्मदनपुष्पगन्धमाल्यालङ्कारविभूषः, तत्र'ववगय' व्यपगता परित्यक्ता-'हाणुम्मदण' स्नानम्-देशतः सर्वतो वा शरीर संस्काररूपम् उन्मर्दन-तैलादिभिः शरीरसंमर्दनम् 'पुप्फ' पुष्पाणिजपादिकुसुमानि, 'मल्ल' माल्यं-पुष्पमाला 'अलंकार' अलङ्काराणि-मणिमुक्ताधाभणानि, तैर्विभूषा-शरीरशोभा येन स तथोक्तः-परित्यक्तस्नानादिसर्वश्रृङ्गारशोभा इत्यर्थः अस्यौदारिकशरीरस्य 'वण्ण हेउं वा' वर्णहेतवे कान्त्याद्यर्थम्, 'वहेउं वा' रूपहेतवे आकृति सौन्दर्यार्थम्, 'विसयहेउं वा' विषयभोगार्थमशनं पानं खाद्यं स्वायम्, एतद्रूपं चतुर्विधमाहारं 'नो' न 'आहारेड' आह. रति, औदारिकशरीरस्य वर्णादिनिमित्तमाहारं न करोतीति भावः 'नन्नत्थणाणदंसणचरित्ताणं वहणयाए' नान्यत्र ज्ञानदर्शनचरित्राणां वहनताया: ज्ञानादिरत्नत्रयागधनाया अन्यत्र न, ज्ञानाधाराधनं विहायाहारं न करोति किन्तु संयमयात्रानिर्वाहार्थमेव करोतीति तात्पर्यम् । सः खलु निर्ग्रन्थो वा निर्ग्रन्थी वा इहलोके चैव बहूनां श्रमणानां श्रमणीनां श्रावकाणां च 'अञ्च. है वे आचार्य उपाध्याय के समीप आगारअवस्था से अनगार अवस्था धारण कर स्नान, उन्मर्दन, पुष्प, गन्ध, माला, अलंकार इन से शारीरिक शोभा करने का परित्याग कर (इमस्स ओरालियसरीरस्स नो चन्नहेउ वा रूबहे उ वा विसयदेउ वा असणं, पाणं, खाइम. साइमं आहारमाहारेइ नन्नत्थ णाणदंसण चारित्ताणं वहणयाए) इस औदारिक शरीर की कांति के निमित्त, आकृति की सुन्दरता के निमित्त, अथवा विषयभोगों को भोगने के निमित्त अशन, पान, खाद्य और स्वाध रूप चतुर्विध आहार नहीं करते हैं किन्तु ज्ञान दर्शन और चारित्र को बहन करने के लिये करते हैं (से णं इहलोएचे। बहूर्ण सनगाणं समगोगं साव પાસેથી આગાર અવસ્થામાંથી અનગાર અવસ્થા ધારણ કરીને સ્નાન, ઉન્મર્દન, પુષ્પ अन्धमा घरेणी वगेरेथा शरीरने शहर छोडीन (इमस्स ओरालियसरीरस्स नो बन्नहेवा वहेउ वा विसयहे वा अमणं. पागं, खाइम, साइमं आहारमाहारेइ नन्नत्य णाणदंसणचारिनाणं वहणयाए) આ ઔદારિક સાપને કાંતિવાળું બનાવવા માટે, આકૃતિને સુંદર બનાવવા માટે અથવા વિષય ભોગો ભેગવવા માટે અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદરૂપ આ જાતના આહારે કરતા નથી, પણ જ્ઞાન, દર્શન અને ચારિત્ર્યની સિદ્ધિ માટેજ જેઓ આહાર વગેરે કરે છે, (मे गं इहलोए चेत्र बहूण समणाणं समणीण सावगाणय साविगाण य अच्चणिज्जे For Private and Personal Use Only

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