Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्म कथासू
टीका- 'तरणं तेसिंइत्यादि - ततः खलु तयोः सार्थवाहदारकयोरन्यदाकदाचित् पूर्वापराहूकालसमये पश्चिमप्रहरे 'जिमियभुनुतरागयाणं' जिमित भुक्त' - आस्वादनेन अनुभूतम् उत्तरं तत्पश्चात् आगतयोः 'समाणाणं' सतोः 'आयंताणं' आचमितयोः - कृतचुलुकयोः 'चोक्खाणं' चोक्षयोः अन्नादिलेपापनयनेन शुद्धयोः अतएव 'परमसुईभूयाणं' परमशुची भूतयोः हस्तमुखादि प्रक्षालनेन परमपवित्रयोः 'सुहोसणवरगयाणं' सुखासनवरगतयोः सुखासनावस्थितयोः 'इमेयावे' अयमेतद्रूपो वक्ष्यमाणलक्षणः 'मिठो कहास मुल्लावे' मिथः कथासमुल्लापः विलासविषयकवार्ता संलापः 'समुपज्जित्था' समुदपद्यत अभवत् तत्श्रेयः खलु आवयोः देवानुप्रिय ! कल्ये यावज्वलति विपुलमशनं पानं पानं खाद्यस्वायमुपस्कार्य तं विपुलमशनपानखाग्रस्वाय धूपटीकार्थ - (तपणं) इसके बाद (अन्नया कयाई) किसी एक समयकी (नेसि सत्यवाह दार गाणं ) उन दोनों सार्थवाह पुत्रों को (जिमियभुनुनरागणणं) जब कि वे जीम कर और खाकर कुल्ला करने के लिये अपने स्थान से उठ चुके थे और (आयंताणं) अच्छी तरह कुल्लाभी कर चुके थे । (चोक्खाण) तथा घोती आदि वस्त्रों पर खाते समय पडे हुए अन्नादिकों के सीतों को जब वे साफ कर शुद्ध हो चुके थे। परममुहभूयाणं) हस्त मुख आदि के प्रक्षालन से उनके मुख आदि अवयत्र जब शुद्ध हो चुके (पुत्रावर कालसमयंसि ) पश्चिम प्रहर में (सुहामणवरगयाणं) जब वे एक स्थान पर आनन्द के साथ बैठे हुए थे - ( (मेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुपज्जित्था ) इस प्रकार का यह बातचीत करते हुए विचार बांधा
थे
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'तणं तेसिं सत्थवाहदारगाणं' इत्यादि ।
टीअर्थ - - ( त एणं) त्यार माह (अन्नया कयाई) अ मेड वध्यतनी बात छे. (ते सिं सत्यवाहदारगाणं) ते मने सार्थवाह पुत्रोने ( जिमिय भुत्तुरागयाण) - જ્યારે તેએ જમીને પાતાના જમવાના સ્થાનેથી કાગળા કરવા માટે ઉંભા થઇ ચૂકયા हता, अने (आयंताणं) सारी रीते तेभणे अगणा पशु पुरी सीधा हता (चोक्खाणं) તેમજ ધાતી વગેરે વસ્રો ઉપર જમતી વખતે પડેલા અન્ન વગેરેના કણાને સાફ કરીને शुद्ध मनी यूञ्ज्या हुता. (परमसु भूयाणं) हाथ भी वगेरेना प्रक्षालनथी तेमना भों वगेरे अवयवो न्यारे स्वच्छ मनी यूभ्य हुता. (पु०वावरण्हकालसमयसि ) हिवसना Deal चडोरमां (सुहासणवरगयाणं) न्यारे तेथेो मे स्थाने आनঃपूर्व मेठा हुता. (हमेवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था ) त्यारे वातयीतनो विचार उहूलव्या
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