Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 697
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् २ पुनः पुनः प्रतीक्षमाणाः इत्यर्थः 'चिट्ठइ' तिष्ठत यावचे कौटुम्बिकपुरुषाः तदाज्ञानुसारेण कार्य सम्पाद्य तिष्ठन्त. ॥ मू. ६ ॥ मूलमू-तए णं ते सत्थवाहदारगा दोचंपि कोडुंबियपुरिसे सदावेति सदावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव लहुकरण जुत्त जोयं समखुरबालिहाणसमलिहियतिक्खग्गसिंगएहिं रययमय घंटसुत्तरजुपवरकंचणखचियणस्थपग्गहोवग्गहिएहिं नीलुप्पलकयामेलएहिं पवरगोणजुवोणएहिं नाणामणिरयणकंचणघंटिया जालपरिक्खित्तं पवरलक्षणोववेयं जुत्तमेव पवहणं उवणेह तेऽवि तहेव उवणेति. ॥ सू. ७॥ टीका--'तएणं ते सत्यवाहदारगा दोचपि' इत्यादि-ततः खलु तो सार्थ वाहदारको द्वितीयवारमपि कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयतः शब्दयित्वा एव वहां का सब अच्छी तरह साफ करो। उसे अच्छे रूपमें गोमय आदि से लीपो। अगरवत्ती, काला गुरु आदि सुगंधित द्रव्यों से उसे वासित करो। पश्चात् हमारी वहां प्रतीक्षा करो। इस प्रकार उन सार्थवाह पुत्रों की बात सुनकर उन कौटुम्बिक पुरुषोंने जैसा उन्होंने कहाथा वैसा ही सब कार्य संपादित कर दिया और उनकी प्रतीक्षा करते हुए वहां बैठ रहे। ॥सूत्र ६॥ तएणं ते सत्थवाहदारगा' इत्यादि । टीकार्थ--(तएणं) इसके बाद (ते सत्यवाहदारगा) उन दोनों सार्थ वाह पुत्रोंने (दोच्चंपि) दुबारा भी कौडुबियपुरिसे) कौटुम्बिकपुरुओं को (सदावें ति) बुलायो (सदावित्ता) बुलाकर उनसे (एवं वयासी) इस प्रकार कहाવગેરે ત્યાંથી સાફ કરી નાખો. તે સ્થાનને છાણ માટી વગેરેથી સરસ રીતે લીપ ધૂપસળી, કાલાગુરુ, વગેરે સુવાસિત દ્રવ્યથી તે સ્થાનને સુગંધિત બનાવે. ત્યાર બાદ તમે અમારી ત્યાં જ રહીને પ્રતીક્ષા કરે. આ રીતે તે સાર્થવાહ પુત્રોની વાત સાંભળીને તે કૌટુંબિક પુરુષોએ તેમણે જેમ આજ્ઞા આપી હતી તેમણે કામ પૂરું કરી દીધું. અને તેમની પ્રતીક્ષા કરતા ત્યાં જ બેસી રહ્યા. એ સૂત્ર. ૬ 'तए णं ते सत्यवाहदारगा' इत्यादि । . :-(त एणं) त्या२ मा (ते सत्यवाहदारगा) ते भने सार्थवाड पुत्रोसे (दोच्चं पि) भाल पा२ (कोडुबियपुरिसे) डौम पुरुषाने (सदाति) मेदाच्या For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762