Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनवरधम मृतवर्षिणीटीका अ. २ मू ११ धन्यस्य च. विमोचनादिकमन्ध ६४७ एवं वुत्ता समाणी हटु जाव आसणाओ अब्भुटेइ अब्भुट्टित्ता कंठाकंठि अवयासई खेमकुसलं पुच्छइ पुच्छित्ता पहाया जाव पायच्छित्तो विउलाई भोग भोगाई भुंजमाणी विहरइ ॥ सू. ११ ॥
टोका-'तएणं से धणे' इत्यादि-ततः खलु म धन्यः सार्थवाहः अन्यदा कदाचित् मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनेन=मित्रज्ञातिप्रभृतिद्वारा बन च 'अत्थसारेण' अर्थसारेण-बहुमूल्यरत्नादिना बहमूल्यरत्नादि ममर्पणेनेत्यर्थः 'रायकजाओ' राजकार्यात्-राजसङ्कटात् आत्मान-स्वकं 'मोयावेइ' मोचयति, मोचयित्वामुक्तो भूत्वा चोरकशालायाः प्रतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव 'अलंकारियसभा' अलङ्कारिकसभा नाफ्तिशालाऔर कर्मादिशरीरसंस्कारस्थानमित्यर्थः, तत्रैवापागच्छति, उपागत्य 'अलंकारि यकम्म' अलङ्कारिककर्म नख केशमण्डनादिकम 'कारवेइ' कारयति, कारयित्वा यत्रव 'पुस्खरिणी' पुष्करिणी-वर्तुलवापी तत्रैवोपागच्छति. उपागत्य-अथ
'तए से धण्णे सत्यवाहे अन्नया कयाई' इत्यादि ।
टीकार्थ-(तपणं) इसके बाद (से धणे सास्थवाहे) उस धन्यसार्थवाहने (अन्नया कयाई) किसी एक समय (मिननाइनियगसयणसंबंधिपरियणेणं) मित्र, ज्ञाति, निजक स्वजन सबंधी परिजनों द्वारा (सकेन अत्थसारेणं) अपने बहू मूल्य रत्नादि भेट राजा को समर्पण करवा कर (रायजानी अप्पाणं मोयावेइ) राज्य संकट से अपने आपको मुक्त करना लिया। (मोयाविना चारगसालाओ पडिणिक्खमइ) जब वह मुक्त घोषित हो चुका-तब कारागार से बाहर निकला (पडिनिक्वमित्ता जेणेत्र अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छ इ) बाहर निकल कर वह जहाँ नापिन की दुकान थी-वहां गपा--(उवागच्छित्ता अलंकारियकम्म कारवेह)
'तएण से घण्णे सत्यवाहे अन्नया कयाई' इत्यादि ॥
टीकार्थ-(तएण) त्या२ पछी (से धण्णे सत्यवाहे) धन्य सार्थवाडे (अन्नया कयाई) 315 मे मते ( मित्तनाइनियगसयणमबधिपरियणेग ) पोताना भित्र, शाति स्वान, समाधी मने परिजनी द्वारा (स्वकेन अस्थमारेग। म मती रत्न वगेरे समय ४२वीने (रायकज्जाओ अप्पाण मोयावेइ) Narय संभाथी पोतानी anतने छापी (मोयावित्ता चारगमालाओ पडिणिक्खमइ) न्यारे ते भुत थयेan ont२ ४२वामां आव्यो, त्यारे ते समांथा मार नियो. (पडिनिमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छद) मडा नीजीने ते मानी हुन. ५२ गया. (उवागच्छित्ता अलंकारियकम्म
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