Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २ धन्यस्य विजयेन सह हरिबन्धनादिकम् दिरूपाऽऽभ्यन्तरपरिषद् धन्यं सार्थवाहमेजमानं पश्यति, दृष्ट्वा 'आसणाओ' श्रासनात्= स्वस्वोपवेशनस्थानात् 'अ०भुट्टे' श्रभ्युतिष्ठाति=संमुवमूर्वी भवति, अभ्युत्थाय 'कंठाकंठिये' कण्ठाकण्ठिकं कण्ठे च कण्ठे च गृहीत्वा तत् कण्ठद्वय संमिलनपूर्वकम् 'अवयासिय' आश्लिष्य= समालिङ्गय ' बाहप्पमोक्खणं' बाष्पप्रमोक्षण= चिरत्रियुक्तप्रियसमागमजन्यहर्षाश्रमोचनं करोति । ततः खलु तदनु स धन्यः सार्थक भद्रा भार्या तत्रैवोपागच्छति । ततः खलु सा भद्रा धन्यं सार्थवाहम् 'एजमार्ग' एजमानं = स्त्रसमीपे समायातं पश्यति दृष्ट्वा नो आदिगते, नो परिजानाति, (पासिता) तब देखकर (आसणाओ अब्भुट्ठे अन्भुट्ठित्ता कंठाकठियं अवयासिय वामोखणं करेंति) वे अपने २ अधिष्ठित स्थान से उठ बैठे और उठकर परस्पर में गले से गला लगाकर मिले । सबने उससे भेंट की । आलिङ्गनकिया । तथा बहुत दिनों के बाद मिलने से उन लोगों ने आनंद जन्य हर्षाश्रुओं का मोचन भी किया अर्थात् हर्षाश्रु बरसाये (ari से धणे सत्यवाहे जेरेव भदा भारिया, तेणेव उवागच्छ३) इसके बाद वह धन्य सार्थवाह जहां भद्रा सार्थवाही थी वहां गया (तएणं सा भद्दा घण्णं सत्यवाहं एज्जमाणं पास, पासित्ता गो आढाइ, नो परियाणाड, नो सक्कारेह, नो सम्माणे, णो अन्भुट्टे, नो सरीरकुसलं पुच्छर ) भद्रा सार्थवाहीने आते हुए धन्य सार्थवाह को देखा भी परन्तु उसने उस का आदर नहीं किया उसका स्वागत नहीं किया, मधुर बचनों से उसका सत्कार नहीं किया विविध वस्तुओंके समर्पण से उसने उसका सन्मान नहीं किया। वह उसके सार्थबाहुने घर तर भावतो लेयो. (पासित्ता) लेने (आसणाओ अब्भुट्ठे अद्वित्ता कंठा कंठियं अवयासिय वाहप्पमोक्खणं करेंति) तेयो मघा પેાતપાતાની જગ્યાએથી ઊભા થયા અને ઊભા થઈને એક બીજાના ગળાથી પ્રેમ. પૂર્ણાંક ભેટા. ધન્ય સાવહુને અધા માણુસા મળ્યા. અને તેનુ આલિંગન કર્યુ” ઘણા દિવસો પછી ધન્ય સાÖવાહને જોયા અને મિલન થયું એટલે બધાની આંખામાં हर्षनां मांसुमो वरसवा साभ्यां (तएग से धणे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया, तेणेव उवागच्छइ) त्यार पछी धत्य सार्थवाह न्यां लंद्रा लाय हती. त्यां गया. (तएण सा भद्दा घण्णं सत्थवाहं एज्जमानं पासर, पासित्ता णो आढाइ, नोसम्माणे, णो अम्भुदेइ, नो सरीरकुसल पुच्छइ ) लट्रा सार्थवाही से धन्य सार्थसार्थ हुने भावतां लेया पशु तेथे तेभने। આદર કર્યો નહિ, તેમનું સ્વાગત કર્યું નહિ, મધુર વાણી વડે તેમને સત્કાર્યા નહિ,
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