Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २ स. ५ देवदत्तवर्णनम्
६२२ 'वजयो नाम तस्करः यावद् गृन इवामिषभक्षी बालघातको बालमारकोऽस्ति तत्तस्मात्का णात् नो खलु देवानुप्रियाः ! एतस्य का राजा वा राजपुत्रो वा राजामात्यो वा 'अवरज्झइ' अपराध्यतिन कोऽप्यन्य एनं पीडयतीत्यर्थः. किन्तु 'एत्यो अत्रार्थ एतद्विषये 'अप्पणो' आत्मनः निजस्य 'सयाईकम्माई' स्वकानि कर्माणि-स्वकृतान्येव कर्माणि 'अवरज्झति' अपराध्यन्ति एनं पीडयन्ति, 'उकटु' इति प्राच्य यत्रब चारगसाला' एवं वयंति) राजगृह नगर में आकरके वहां के शृगाटक, त्रिक चतुक चत्वर और महापथ इन सब मार्गों में उन्होंने उस विजय चोर को कोडों से बेतों से चिकने किये हुए कोडों--से बार बार और भी बुरी तरह पीटते हुए उसके ऊपर भस्म धूली और तृग आदि का कडा करकट बार २ डालते हुए फिर इस प्रकार जोर जोर से घोषण की--(एएणं देवाणुप्पिया विजए नामं तकरे जाव गिद्धे विव आमिपभावी बालघायए वालमारए) हे देवानुप्रियो ! यह विजय नाममा चोर है। यह गृद्ध पक्षी की तरह आमिष (मांस) का भक्षो है बाल घातक है और बाल मारक है। (तं नो बलु देवानुप्पिया! एयस्स केड राया वा रायपुरिसे वा रायमच्चे वा अवरज्झइ) मो हे देवानुपियों! इस विषय में इनका न कोई राजा अपराधी है. न राजपुत्र अपराधी है और न राना का प्रधान अपराधी है। (एयमढे अप्पणो मयाई कम्म
अरझंति) किन्तु इसके निज कृत कर्म ही अपराधी बने हुए हैं। (तिमई) ऐ। कहकर (जेगामेव चारगसाला तेणामेव उवागच्छंति) वे
ગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક ચત્ર અને મહાપથે આ બધા માર્ગો ઉપર કેરડા, તે અને ચીકણું કરાએલા કેરડાઓથી સખત રીતે વિજ્યોરને મારતાં અને વારંવાર તેના ઉપર રાખ, માટી અને કચેરે વગેરે નાખતાં રક્ષકોએ મેટેથી ઘોષણા (૮૮) ४१ (एमणु देवाणुप्पिया विजए नाम तक्करे जाव गिद्र विन आमिम भक्खी बालघायए बालमारए) हेवानुप्रियो ! 21 विय नाभे यो२ छ. ગીધની જેમ આ માંસ ખાનાર છે, બાળ ઘાતી છે અને બાળ હત્યારે છે. (न नो खलु देवाणुपिया! एयरस केइ राया वा रायपुत्त वा रायमच्चे वा अवरज्झइ) मेटोड यानुप्रियो ! मा विष ७५ ते २ion पराधी નથી, રાજપુત્ર અપરાધી નથી, તેમજ રાજાના પ્રધાન પણ અપરાધી નથી. (एयम अपणो मयाई कम्मइ अवरज्झति) प म शते सना पोताना भौ मेने अपराधी समित ४२ छ. (तिकक) माम डीने (जेणामेव
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