Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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नगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.१.३६ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम्
वान् महावारा मेघकुमारं स्वयमेव मत्राजयति तत्रादौ पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारं श्रावयति, तदनु- 'इच्छाकारेण इत्यादि पठित्वा 'तस्मुत्तरीकरणेणं' इत्यादिपाठेन क्षेत्रशुद्धयार्थं कायोत्सर्ग कारयति । तत्र मेत्रकुमारः कार्य स्थिरीकृत्य "इच्छाकारेण लोगस्स द्वयं च' समौ मनसि चिन्तयति । तत्पश्चात् 'नमोअरिहंताणं' इत्यादि पठनपूर्वकं कायोत्सर्ग पारयति । तदनन्तरं श्री भगवान् महावीर स्वामी 'लोगस्स' इत्यादिपाठ श्रावयति, ततः - 'करेमि भंते' इत्यादि पाठेन दीक्षां ग्राहयति इति भावः । तदनु पार्श्वे उपवेश्य 'सयमेव मुंडावर ' स्वयमेत्र मुण्डयति - द्रव्यभावतः तदनु- 'नमोऽत्थुणं' इति पाठं वामजान्धवकृत्य है । (तणं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पञ्चावेइ, सयमेन मुंडावेइ, सगमेव आयार जान धम्ममाइक्खइ ) इस प्रकार मेघकुमार का निवेदन सुनकर श्रमण भगवान् महावीर ने उन मेवकुमार को स्वयं प्रवजित किया इस में सर्व प्रथम उन्होंने पंच परमेष्ठी का नाम उन्हें सुनाया। बाद में " इच्छा कारणं " इस पाठ को पढकर तस्स उत्तरी करणेणं " इत्यादि पाठ के द्वारा उन्हों ने क्षेत्र विशुद्धि के लिये उनसे कायोत्सर्ग करवाया । मेघकुमारने शरीर को स्थिर करके " इच्छाकारेण लोगस्स द्वयंच " इत्यादि पाठ का मन में चिन्तवन किया और बाद में " नमो अरिहंताणं " इत्यादि पढते हुए कायोत्सर्ग की समाप्ति की । इस के बाद श्री भगवान् महावीर स्वामीने " लोगस्स " इत्यादि पाठ उन्हें सुनाया । करेमि भंते " इत्यादि पाठ को पढकर उन्हें दीक्षीत किया। दीक्षा अंगीकार कर चुकने के बाद प्रभुने उन्हें अपने पास बैठाकर स्वयंमुडित किया। और " नमोत्थूणं " पाठ को बाम जानु
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कुमारं यमेव पचावे, सयमेव मुंडावइ, सयमेत्र आयार जाव धम्ममाइवखड ) આ પ્રમાણે મેઘકુમારની વિનંતી સાંભળીને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે મેઘકુમારને જાતે પ્રત્રજિત र्या. પ્રવ્રુજિત કરતાં સૌ પહેલાં તેમણે પંચપરમેષ્ઠીના નામ : મેઘકુમારને સંભળાવ્યા. ત્યારે ખાદ इच्छा कारणं " मा चाहने लखीने " तस्स उत्तरी कारणेणं " वगेरे पाठ द्वारा तेभागु ક્ષેત્ર વિશુદ્ધિને માટે મેઘકુમારથી કાયાત્સગ કરાવડાવ્યા. મેઘકુમારે શરીરને स्थिर रीने " इच्छाकारेण लोगस्स द्वयंच " वगेरे पाउनु भनभां चिंतन यु अने त्यार आह" नमो अरिहंताणं " वगेरे मोसता अयोत्सर्ग यूरो यो. त्यार पछी श्री भगवान भेडावीर स्वाभीये " लोगस्स " वगेरे पाठ मेघडुभारने सलजाव्या. त्यार पछी " करेमि भंते " वगेरे चाहे द्वारा भेघकुमारने हीक्षित य દીક્ષા સ્વીકાર કર્યા બાદ પ્રભુએ તેમને પાતાની પાસે બેસાડીને જાતે મુડિત કર્યા. અને " नमोत्थणं " पाउने डाभी अनु (घूँटारा) अशी उशवडावीने तेभना वडे थे
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