Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाओ
दग्ध्वा =प्रज्वाल्य 'निट्ठिए' निष्ठितः क्षयं गतः स्वगृहीतकाष्ठतृणादीनां भस्मी भूतत्वात्, 'उपरतः = निवृत्तः नूननकाष्ठकचवराद्यभावात्, 'उवसंते' उपशान्तः पवनातिशयाभावात् 'विज्झाए' विध्यातः अंगारपुरमुराद्यभावात् सर्वथा प्रकारेण शान्तः, 'होत्या' अभवत् = जातः 'यावि' चापि चकरातभूमिगतोष्णतापि शान्ता, अपि = निश्वयेन तद्वनं वह्निविघ्नरहितं जातम् । ततः खलु ते बहवः सिंहां यावत् = व्याघ्रादयः चिल्ललाव तं वनदन्नाग्नि 'निट्ठियं जान विज्झायं' निष्ठितं यावद् विध्यातं = शान्तं पश्यन्ति दृष्ट्वा अग्निभय
जलाती रही । (शामित्ता निट्टिए, उवरए उवसंसे, विभाए, यात्रि होत्था ) जलाकर फिर वह स्व गृहीत काष्ट वृगादिकों के भस्मीभूत हो जाने के कारण नष्ट हो गई नूतन काष्ट रूप कचचरादि का अभाव होने से उपरद हो गई, तथा पनातिशय का सहारा न मिलने से उपशांत हो गई बाद में फिर बिलकुल बुझ गई। यहांतक कि उस वन में भूमिगत उष्णता भी नहीं रही । इस तरह वह अग्नि के विघ्न से रहित हो गया । (तपणं ते बहने सीहा य जात्र चिल्लिया यतं वदवं निडिय जान विज्झायं पासंति ) इस के बाद जब उन सिंह आदि जानवरों से लेकर जंगली गर्दभों तक ने उस वनाग्नि को निष्टित विध्यात आदि रूप में देखा तो ( पासित्ता ) देखकर ( अग्गिभयविप्प मुक्का) वे सब के सब अग्नि के भय से विमुक्त होकर ( तव्हाए छुहाए य पर माइया समाणा मंडलाओ पडिनिक्स्वमंति) कई दिनों से पिपासा और क्षुधा से आक्रान्त बन जाने के कारण उस मंडल से एकदम
( झमित्ता निट्ठिए उत्ररए उवसंते, विज्झाए याविहोत्था ) मणीने तेमां श्रेष्ठ તૃણુ વગેરે ભસ્મ થઈ ગયાં ત્યારે પોતાની મેળે જ તે એલવાઇ ગયેા, ખીજાં કાજ કચરા વગેરેના અભાવને લીધે ઉપરત થઇ ગયા, તેમજ પવન વગેરેની સહાય વગર ઉપશાંત થઈ ગયા. સંપૂર્ણપણે મુઝાઇ ગયા અને છેવટે તે જ ંગલની ભૂમિ પણ ठंडी अर्ध. (तरणं ते बहवे सीहा व जाव चिल्लियाय तं वणदत्रं निट्ठिय जाव विझायं पासंति) त्यार पछी नयारे सिड वगेरे आशीमोथी भांडीने मंगलना ગધેડાં સુદ્ધાં બધાંએ જંગલના અગ્નિને નિષ્ઠિત વિધ્યાન વગેરે રૂપમાં જોયુ ત્યારે ( पासिता ) लेने ( भग्गिभविष्यमुक्का ) ते मघां अभिनी श्रीस्थी भुस्ति भेजवीने ( तहाए छुहाएय पर माहया समाणा मंडलाभ पडिनिवखमंति ) કેટલાય ક્રિસના ભૂખ્યાં અને તરસ્યાં ખધાં પ્રાણીઓ તે મંડળથી બહાર નીકળ્યાં.
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